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________________ हिन्दी अनुवाद : हा दैव! जंगल में आ पड़ी अधन्य दुखियारी के उसी क्षण उत्पन्न हुए पुत्र का किसी निर्दयी ने अपहरण कर लिया। गाहा :किल पुत्तयस्स वयणं पिच्छिस्समहं पभाय-समयम्मि । नवरं हयास-विहिणा एयं मह अन्नहा विहियं ।।३।। संस्कृत छाया :किल पुत्रस्य वदनं द्रक्ष्याम्यहं प्रभातसमये । नवरं हताशविधिनैतन्ममान्यथा विहितम् ।।३।। गुजराती अनुवाद : सवारे हुं पुत्र, मुख जोइश 'खरेखर'! आवी मारी आशा, हताश विधिये अन्यथा करी।' हिन्दी अनुवाद : सवेरे मैं अपने पुत्र का मुख अवश्य देखूगी, ऐसी मेरी आशा थी किन्तु विधि ने अन्यथा कर दिया। गाहा : अडवि-पवेसाईयं दुक्खं दाऊण दूसहं देव्व! । किं अज्जवि न हु तुट्ठो अवहरिओ जेण मह पुत्तो? ।।४।। संस्कृत छाया : अटवीप्रवेशादिकं दुःखं दत्त्वा दुःसहं दैव ?। किं अद्यापि न खलु तुष्टोऽपहृतो येन मम पुत्रः?।।४।। गुजराती अनुवाद : हे भाग्य! अटवी प्रवेशादिक दारुण दुःख दइने तने हजु पण शुं संतोष न थयो के जेथी मारा पुत्र, अपहरण कर्यु? हिन्दी अनुवाद : ऐ भाग्य! जंगल-प्रवेश जैसा दारुण दुःख देने पर भी क्या तुम्हें सन्तोष नहीं हुआ जो तुमने मेरे पुत्र का अपहरण भी कर लिया?
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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