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श्रीमद्धनेश्वरसूरिविरचितं सुरसुंदरीचरिअं
ग्यारहवाँ परिच्छेदः गाहा :
अह लद्ध-चेयणा हं मुच्छा-विरहम्मि गरुय-सोगिल्ला। निय-हिययं कुट्टिती पलविउमेवं समाढत्ता ।।१।। संस्कृत छाया :
अथ लब्यचेतनाऽहं, मूर्छाविरहे गुरुशोकवती । निजहृदयं कुट्टयन्ती, प्रलपितुमेवं समारब्धा ।।१।। गुजराती अनुवाद :
कमलावती विलाप- हवे मूर्छा दूर थये छते प्राप्त थयेल चैतन्यवाली, भारे शोकयुक्त हुँ पोताना हृदयने कुटती आ प्रमाणे प्रलाप करवा लागी. हिन्दी अनुवाद :
कमलावती विलापमूर्छा दूर होने के बाद होश में आई शोकयुक्त मैं अपने हृदय को पीटती विलाप करने लगी। गाहा :
हा! निहएण केणवि अडवी-पडियाए दुक्ख-तवियाए ।
तक्खणमेत्तुप्पन्नो पुत्तो हरिओ अहन्नाए ।।२।। संस्कृत छाया :
हा ! निर्दयेन केनाऽपि अटवीपतिताया दुःखतप्तायाः । तत्क्षणं मात्रोत्पन्नः पुत्रो हृतोऽधन्यायाः ।।२।। गुजराती अनुवाद :
हा दैव! अटवीमां आवी पडेली, दुःख थी दुःखियारी अधन्या ओवी मारा, जातमात्र ते ज क्षणे उत्पन्न थथेल पुरनु निर्दय सवा कोइस अपहरण कर्यु।