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34 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 2, अप्रैल-जून, 2016
गंगा घाटी में सज्जित नैग्मेषी की मृणाकृतियाँ वैशाली के काल IV (२००-६०० ई०पू०) (सिंह, बी० पी० एवं सीताराम राय, १९६९ : १६३; फलक LII, ९), खैराडीह के काल III (१०० ई०पू० से ३०० ई०) ( जायसवाल विदुला, १९९१; फलक VIII, २४, २६, २७), कुग्रहार के काल III ( १००-३०० ई० ) (अल्तेकर, ए०एस० एवं बी० मिश्रा, १९५९ : फलक XLII ५, ७ - ८ ) एवं पाटलिपुत्र के काल II (१५० ई०पू० से ५० ई०) (सिंह, बी० पी० एवं लाला आदित्य नारायन, १९७० : ४३; फलक XIII, A, ३) से प्राप्त हैं।
क्रम सं० ६
सारनाथ, खात सं० एवं स्तर सं० अप्राप्त; ए०सी०सी० नं० ३१२२ (सारनाथ संग्रहालय) चित्र सं० ६
भग्न स्त्री मृणाकृति धड़ (शीर्ष एवं कमर के नीचे से भग्न) जो मध्यम परिष्कृत मिट्टी से हस्तनिर्मित, लाल पोत चढ़ी है। इसकी पहचान राजघाट की नैग्मेषी मृण्मूर्ति के समान है यथा नोकदार पतला गला, कंधे पर उखड़े हुए चिपकाए कान, मिट्टी की गुटिका चिपकाकर उरोज जिस पर पिन छिद्रों से स्तनाग्र का अंकन, छोटे हाथ के सिरे पर चम्मच के समान दाब है। सारनाथ से प्राप्त इस आकृति की तिथि छठी शताब्दी ई० निर्धारित है। राजघाट उत्खनन से इनके समान ५ अन्य नैग्मेषी मृण्मूर्तियाँ काल IV (३००-७०० ई०) (नारायन, ए०के० एवं पी० के० अग्रवाल, १९७८ : ९०; फलक XVII २; फलक XVIII, A, ६; फलक XVIII, B, ९, ७; फलक XIX, १) प्राप्त हैं एवं एक मृण्मूर्ति सराय - मोहाना से प्राप्त है (सिंह, बी० पी० एवं ए०के० सिंह, २००४; फलक XIX, ८)।
गंगा घाटी में सादे अंकन की नैग्मेषी ( अजमुख) प्रतिमाएँ वैशाली के काल IV (३००-७०० ई०पू०) (देवकृष्ण एवं विजयकान्त मिश्र, १९६१ : ५३; फलक XII, C, ७), काल IV (२००-६०० ई०पू० ) (सिन्हा, बी० पी० एवं सीताराम राय, १९६९ : १६२-१६३; फलक LII, १-९), कुग्रहार के काल III एवं IV (१०० से ३०० ई०; ३०० से ४५० ई०) (अल्तेकर, ए०एस० एवं वी० मिश्रा, १९५९ : १०९-११२; फलक XLII, 1-8, XLIII, B, 1-4), पाटलिपुत्र के काल II (१५० ई० पू० से ५०० ई०) (सिंह, बी० पी० एवं लाला आदित्य नारायन, १९७० : ४३; फलक XIII, A, १-३), खैराडीह के काल III (१०० ई०पू० से ३०० ई०) (जायसवाल विदुला, १९९१ : ३८-३९; फलक IX, २७ - ३०) एवं कौशाम्बी के कुषाण एवं उत्तर कुषाण काल से (शर्मा जी०आर०, १९६९ : ६५-६६; फलक XXXVI, B १-६ ) से प्राप्त हैं।