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32 : श्रमण, वर्ष 675 अंक 2, अप्रैल-जून, 2016 क्रम सं० ३१ राजघाट, सतह से प्राप्त; ए०सी०सी० नं० ४०५ आकार: ९ से०मी० चित्र सं० ३ भग्न अजमुख मृणाकृति (कमर के नीचे से भग्न) जो परिष्कृत मृदा से हस्तनिर्मित, अच्छी पकी (लाल) है (नारायन, ए०के० एवं पी०के० अग्रवाल, १९७८ : ८५)। इसका चेहरा चुटकी द्वारा गोल उभार में शुक नासिका के रूप में निर्मित है, चीरे द्वारा मुख का अंकन है, सिर पर छिद्रित पंखाकार केशविन्यास है। लूंठदार हाथ के सिरे पर चम्मच के समान दाब है। धड़ भाग से चपटी इस प्रतिमा का चौड़ा कंधा है। चुटकी से उभार कर बना अजमुख एवं लम्बे लटकते चीरे हए कान हैं। राजघाट उत्खनन से इसके समान (९) मृणाकृतियाँ (नारायन, ए०के० एवं पी०के० अग्रवाल, १९७८; फलक XVII, 4;XVIIIA, 1, 3-6; XVIIIB, 2, 4-6) एवं ६ अपुरातात्विक संदर्भ से प्राप्त हैं। गंगा घाटी में सादे अंकन की नैग्मेष मृणाकृतियाँ कुप्रहार के काल III (१००-३०० ई०) (अल्तेकर, ए०एस० एवं विजयकान्त मिश्र, १९५९ : ११०; फलक XLII १, २) खैराडीह के काल III (१०० ई०पू० से ३०० ई०) (जायसवाल विदुला, १९९१ : ३७; फलक VIII २३, २५), नरहन के काल IV (२०० ई०पू० से ३०० ई०) (सिंह पुरुषोत्तम, १९९४: १५०; फलक.XXVIII; १) एवं अहिच्छत्रा के स्ट्रेटम III (३५०-७५० ई०) (अग्रवाल वी०एस०, १९८५ : ३१-३२; फलक XVIII १२६-१२९) से प्राप्त है। (ख) आभूषित जैग्मेक: वाराणसी की तीन नै मेष मृण्मूर्तियाँ आभूषणयुक्त व सज्जित हैं। आभूषण मिट्टी की चिपकवा पट्टी, खाँच रेखाओं एवं ठप्पा वलय द्वारा निर्मित है। नैग्मेष (पुरुष) प्रतिमा के यह आभूषण मथुरा के कंकाली टीले से प्राप्त प्रस्तर पटिया पर बने नैग्मेष की प्रतिमा के आभूषण एवं नैग्मेष से जुड़े कथानक की पुष्टि करता है। क्रम सं०४ राजघाट, खात संo XI, स्तर सं० ४; ४० सी०सी० नं० ७०० आकार : ९ से० मी० चित्र सं० ४ भग्न मानव मृणाकृति का धड़ एवं अंशत: सुरक्षित शीर्ष भाग। मध्यम परिष्कृत मिट्टी से हस्तनिर्मित, लाल पोत चढ़ी एवं अच्छी प्रकी (लाल) मृणमूर्ति (नारायन,