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________________ वाराणसी की नैग्मेष मृण प्रतिमाएं : एक अध्ययन : 31 द्वारा यज्ञोपवीत सूत्र का अंकन है। यह मृण्मूर्ति राजघाट उत्खनन के काल III (ई० सदी के प्रारम्भ से ३०० ई०) से प्राप्त है। इसके समान २ अन्य उदाहरण भी इसी काल से प्राप्त (नारायन, ए०के० एवं पी०के० अग्रवाल, १९७८ : ८७; XVI, B, ८.९) हैं। नैग्मेष मृण्मूर्तियों में यज्ञोपवीत का अंकन अहिच्छत्रा के स्ट्रेटम III (३५० से ७५० ई०) (अग्रवाल वी०एस०, १९८५ : ३२; फलक XVII,A, १३३) से प्राप्त है। अन्य पुरास्थलों में नैग्मेष मृणाकृतियों में यज्ञोपवीत के अंकन का अभाव है। अहिच्छत्रा की नैग्मेष मृण्मूर्ति में मानव मुख का अंकन है परन्तु आँखें अज समान चौड़ी फैली है। वाराणसी की इन प्रतिमाओं का काल ई० सदी के प्रारम्भ से ७०० ई० तक माना जा सकता है। (ब) नैग्मेष (अजमुख) मृण्मूर्तियाँ : नैग्मेष मृणमूर्तियों के इस वर्ग में २० मृण्मूर्तियाँ प्राप्त हैं जिसे दो उपवर्गों में विभाजित कर अध्ययन किया गया है : . (क) नैग्मेष (अजमुख) सादा अंकन (ख) आभूषित नैग्मेष (क) नैग्मेष अजमुख सादा अंकन : राजघाट से १७ नैग्मेष की हस्तनिर्मित मृणाकृतियाँ प्राप्त हैं। अजमुख मानव शारीर, अजकर्ण एवं पंखाकार शीर्ष, चीरा मुख इनकी विशेषताएं हैं। क्रम सं० २ राजघाट, खात संo XI,, स्तर सं० ४; ए०सी०सी० नं० १०३६ आकार : ६ से०मी० चित्र सं० २ अजमुख मानव शरीर की पूर्ण मृणाकृति जो परिष्कृत मिट्टी से हस्तनिर्मित, अच्छी पकी (लाल) है (नारायन, ए०के० एवं पी०के० अग्रवाल, १९७८ : ८५)। इस पर चुटकी से उभार कर मोटी शुक नासिका का अंकन है, गहरे चीरे द्वारा मुख प्रदर्शित है। प्रतिमा में लम्बे लटकते कान एवं सींग अंकन विहीन हैं। यह मृणमूर्ति ताराकार मृणमूर्तियों के समान ही छोटे आकार की है एवं इसके बहुत छोटे हाथपैरों के सिरों पर चम्मच के समान अंकित है। यह मृणमूर्ति राजघाट के काल IV (३०० से ७०० ई०) से प्राप्त है।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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