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________________ जैन परम्परा में वर्षायोग का महत्त्व आशीष कुमार जैन जैन परम्परा में वर्षायोग का बहुत ही महत्त्व है। जैन धर्म में चातुर्मास, वर्षायोग, वर्षावास ये तीनों ही शब्द एकार्थवाची हैं। श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक इन चार माहों में वर्षायोग होने से इसे चातुर्मास कहते हैं। वर्षायोग का संबन्ध वर्षा ऋतु के मात्र दो माह से नहीं अपितु वर्षाकाल के चार मासों से है। प्राकृत हिन्दी शब्दकोश में 'चातुर्मास' शब्द का उल्लेख इस प्रकार मिलता हैचाउमास | चाउम्मास - चातुर्मास, चौमासा, आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन मास की शुक्ल चतुर्दशी। चाउम्मासिअ (चातुर्मासिक) - चार मास सम्बन्धी, जैसे आषाढ़ से लेकर कार्तिक तक चार महीनों से सम्बन्ध रखने वाला। आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन मास की शुक्ल चतुर्दशी तिथि, पर्व विशेष। चाउम्मासी (स्त्री) (चातुर्मासी) - चार मास, चौमासा, आषाढ़ से कार्तिक,कार्तिक से फाल्गुन और फाल्गुन से आषाढ़ तक के चार महीने। इसी तरह एकार्थक कोश में भी चातुर्मास' शब्द का उल्लेख इस प्रकार हैचाउमासित (चातुर्मासिक) - चाउम्मासितो संवच्छरिउ त्ति वा वासारत्तिउ त्ति वा एगट्ठ। चाउम्मासित (चातुर्मासिक) - सामान्यत: चातुर्मास चार मास का होता है अत: उसे चातुर्मासिक कहा जाता है। प्राचीन काल में साल का प्रारम्भ चातुर्मास से होता था अत: वर्षावास का एक नाम सांवत्सरिक भी है। दूसरा शब्द है 'वर्षायोग' - 'वर्षायोग' का उल्लेख दिगम्बर जैन ग्रन्थों में मिलता है, मूलाचार ग्रन्थ में मुनियों के दस श्रमण कल्पों में से मास नामक कल्प में वर्षायोग का विधान है। वहाँ पर कहा है कि 'वर्षायोग ग्रहण से पहले एक मास पर्यन्त रहकर वर्षाकाल में वर्षायोग ग्रहण करना तथा वर्षायोग को समाप्त करके पुनः एक मास तक अवस्थान करना चाहिए। लोक स्थिति को बतलाने के लिए और अहिंसा आदि व्रतों का पालन करने के लिए वर्षायोग के पहले एक मास रहने का और अनन्तर भी एक मास तक रहने का विधान है। यह विधान श्रावक आदिकों के
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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