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22 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 2, अप्रैल-जून, 2016 ९. वही, पृ० ३१९-३२० १०. विंशतिका, १०.५ ११. जैन, बौद्ध तथा गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग-२,
पृ० ३२०
रत्नकरण्ड श्रावकाचार, १३९ १३. दशाश्रुतस्कन्ध, ६.४ १४. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, १४० १५.. वही, १०७ १६. जैन, बौद्ध तथा गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग-२,
पृ० ३२१ लाटी संहिता, श्लोक २०, पं० राजमल्लजी। श्रावकाचार, भाग-५, पृ० ३७२-७३ (क) दशाश्रुतस्कन्ध, ६.६. (ख) विंशतिका, १०.९-११ सागार धर्मामृत, ७.८ विंशतिका, १०.१४ प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, श्लो० १०७ क्रिया-कोष, श्रावकाचार, भाग-५, पृ० ३७५ गुणभूषण श्रावकाचार, भाग-२, श्लोक ७३, पृ० ४५४ दशाश्रुतस्कन्ध, ६.१० वहीं, ६.११ आसेविऊण एवं कोई पव्वयइ तह गिही होई। तव्भावभेयओ च्चिय विशुद्धिसंकेसभेएणं। विशंतिका, १०.१८ देखिए- वसुनन्दि श्रावकाचार, सागारधर्मामृत, धर्मसंग्रह, गुणभूषण श्रावकाचार
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प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, श्लोक ११०, पृ० ४३४ लाटी संहिता, श्लोक ६४ . प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, श्लोक- ३४, ४१-४२ जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग-२, पृ० ३२४
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