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________________ जैन परम्परा में श्रावक प्रतिमा की अवधारणा : 19 लेता था। किन्तु प्रतिमा धारण करने के पश्चात् उसका भी वह परित्याग कर देता है। दिवा-मैथुन और रात्रि-भुक्ति त्याग - ये दोनों कार्य इस प्रतिमा में करणीय होते हैं। ७. सचित्तत्याग प्रतिमा : इस प्रतिमा का अर्थ है- यावज्जीवन के लिए सभी प्रकार के सचित्त आहार का परित्याग कर अचित्त आहार को ग्रहण करना। आहार प्रत्येक जीवात्मा के लिए आवश्यक है। पर जो आहार भक्ष्य व अचित्त हो, वही प्रस्तुत प्रतिमाधारी श्रावक ग्रहण कर सकता है। जो आहार सचित्त है, उसे वह ग्रहण नहीं कर सकता। यथा-गुठलीयुक्त आम, गुठलीयुक्त पिण्ड खजूर, बीजयुक्त मुनक्का आदि। यह प्रतिमाधारी श्रावक अप्रासुक अर्थात् अग्नि में न पकाये हुए हरित अंकुर, बीज, जल, नमकादि नहीं खाता।२० । ८. आरम्मत्याग प्रतिमा : सचित्त त्याग के पश्चात् सभी प्रकार के सावध आरम्भ का त्याग किया जाता है। आरम्भ शब्द जैन परम्परा का एक पारिभाषिक शब्द है, जिसका अर्थ है - हिंसात्मक क्रिया। श्रमणोपासक संकल्पपूर्वक त्रस जीवों की हिंसा नहीं करता, किन्तु कृषि, वाणिज्य, अन्य व्यापार और घर-गृहस्थ के कार्यों को करते हुए षट्काय जीवों की हिंसा हो जाती है। इस प्रकार की वाणी का उपयोग करना, जिससे दूसरों का हृदय तिलमिला उठे, यह वाचिक आरम्भ है। शस्त्र आदि के द्वारा या शारीरिक क्रियाओं के द्वारा किसी प्राणी का हनन करना कायिक आरम्भ है। इस तरह मानसिक, वाचिक और कायिक- तीनों आरम्भ का त्याग किया जाता है।२१ आचार्य सकलकीर्ति ने इस प्रतिमाधारी को स्थादि की सवारी के त्याग का भी विधान किया है।२२ ९. प्रेष्य परित्याग प्रतिमा अथवा परिग्रहत्याग प्रतिमा : प्रस्तुत प्रतिमाधारी सेवक व्यक्तियों से किंचित् मात्र भी आरम्भ नहीं कराता है। वह जलयान, नभोयान, स्थलयान आदि किसी भी वाहन का उपयोग न स्वयं करता है और न दूसरों को उपयोग करने के लिए कहता ही है। जितने भी गृहस्थ सम्बन्धी कार्य हैं, यथागृहनिर्माण, व्यापार, विवाह आदि जिनमें आरम्भ रहा हुआ होता है, उन्हें वह मनवचन-काय से न स्वयं करता है और न दूसरों से करवाता है, किन्तु उसके अनुमोदन का त्याग नहीं करता। इस प्रतिमा में उसके परिग्रह की वृत्ति भी न्यून हो जाती है। परिग्रह की वृत्ति न्यून होने से इस प्रतिमा का अपर नाम परिग्रह परित्याग भी है। पंडित दौतलरामजी ने अपने क्रिया-कोष ग्रन्थ में लिखा है कि प्रस्तुत प्रतिमाधारी श्रावक काष्ठ और मिट्टी से निर्मित पात्र रख सकता है, धातु पात्र नहीं रख सकता।२३ गुणभूषण ने प्रस्तुत प्रतिमाधारी श्रावक के लिए वस्त्र के अतिरिक्त सभी प्रकार के परिग्रह त्याग का वर्णन किया है।२४
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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