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________________ 18 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 2, अप्रैल-जून, 2016 रहने से आगे चलकर वह दिगम्बर श्रमण बन सकता है। श्वेताम्बर परम्परा में इस प्रकार का विधान नहीं है। ४. प्रौषध प्रतिमा : व्रत की दृष्टि से प्रौषध ग्यारहवाँ व्रत है और प्रतिमा की दृष्टि से वह चतुर्थ प्रतिमा है। व्रत में व्रती देशतः प्रौषध भी कर सकता है, परन्तु, प्रस्तुत प्रतिमा में प्रतिपूर्ण प्रौषध करने का विधान है। दशाश्रुतस्कन्ध में स्पष्ट वर्णन है कि श्रावक अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णमासी प्रभृत पर्व दिनों में प्रतिपूर्ण प्रौषधोपवास करे।१३ आचार्य समन्तभद्र के अनुसार पर्व के दिनों में तथा एक मास में आने वाली दो अष्टमी और दो चतुर्दशी के दिन अपनी शक्ति को नहीं छिपाते हुए प्रोषधपूर्वक अर्थात् एकभुक्ति पूर्वक (एक बार आहार) चार प्रकार के आहार का त्याग करना आत्माभिमुख रहने वाले व्रती की प्रोषधोपवास प्रतिमा है। इस प्रतिमा का प्रयोजन पाँचों इन्द्रियों को वश में करना है, क्योंकि इस काल में स्नान, विलेपन, आभूषण, स्त्रीसंसर्ग, पुष्प-इत्र आदि के सेवन का निषेध है। आरम्भादि का भी त्याग होता है।५ ५. नियम प्रतिमा : इसे कायोत्सर्ग प्रतिमा एवं दिवामैथुनविरत प्रतिमा भी कहा जाता है।१६ इस प्रतिमा में श्रावक विविध नियमों को ग्रहण करता है। उनमें पाँच बातें प्रमुख हैं- स्नान नहीं करना, रात्रि में चारों प्रकार के आहार का परित्याग करना, धोती को लांग नहीं लगाना, दिन में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना तथा रात्रि में प्रतिमा का भलीभाँति पालन करना। इस तरह विविध नियमों को श्रावक धारण करता है। एक माह में एक रात्रि कायोत्सर्ग की साधना करता हुआ व्यतीत करता है। इसमें श्रद्धा, धृति, संवेग, संहनन के अनुसार धर्म-ध्यान की आराधना की जाती है। लाटीसंहिता में लिखा है कि रोगादि होने पर उसके शमनार्थ रात्रि में गंध-माल्याविलेपन और तेलाभ्यंगन भी नहीं करना चाहिए।१७ पं. प्रवर दौलतरामजी ने रात्रि में गमनागमन के साथ ही साथ अन्य आरम्भ का भी निषेध किया है।८ ६. ब्रह्मचर्य प्रतिमा : पाँचवीं प्रतिमा में श्रावक दिवा-मैथुन का त्याग करता है, पर रात्रि में इसका नियम नहीं होता। किन्तु प्रस्तुत प्रतिमा में वह दिन और रात्रि-दोनों में मन-वचन-काय से अब्रह्म का त्याग करता है। वह पूर्ण जितेन्द्रिय बन जाता है। वह इन्द्रियों के विषय-विकारों में आसक्त नहीं होता।९ दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में इस छठी प्रतिमा का नाम 'रात्रिभुक्ति त्याग' दिया है और उसपर चिन्तन करते हुए लिखा हैं कि प्रस्तुत प्रतिमा का सम्बन्ध उपभोग-परिभोग परिमाणव्रत से है। उपभोग के योग्य पदार्थों में सबसे प्रधान वस्तु है- स्त्री। अत: रात्रि में भी मन-वचन और काय से स्त्री-सेवन का परित्याग किया जाता है। प्रतिमा धारण करने के पूर्व भी श्रावक दिन में मैथुन का सेवन नहीं करता, किन्तु हास-परिहास के रूप में वह मनोविनोद कर
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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