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संस्कृत छाया :
छट्वा यौवनं मम तातश्चिन्तातुरो छं जातः ।
कोऽनुरूपो भविष्यति भत्तेह मम दुहितुः ? ।।१८७।। गुजराती अनुवाद :
पिता नी चिंता माझं खीलेलुं यौवन जोइने पिताजी खूब चिंता करवा लाग्या, के 'मारी पुत्री नो उचित अर्ता कोण थशे? हिन्दी अनुवाद :
पिता की चिन्तामेरे खिले यौवन को देखकर पिताजी खूब चिन्ता करने लगे कि मेरी पुत्री के लिए उचित वर कौन होगा? गाहा :
अह अन्नया य सुमई नेमित्ती आगओ तहिं रन्ना । पुट्ठो मह धूयाए को होही भद्द! भत्तारो? ।।१८८।। संस्कृत छाया :
अथाऽन्यदा च सुमति-नैमित्तिक आगतो तदा राज्ञा ।
पृष्टो मम दुहितुः को भविष्यति भद्र ! भर्ता ? ।।१८८।। गुजराती अनुवाद :
हवे कोई समये सुमति नामे स्क नैमित्तिक आव्यो, त्यारे राजास पूछयु हे भद्र! मारी कन्या नो अर्ता कोण थशे? हिन्दी अनुवाद :
किसी समय वहाँ सुमति नाम का एक नैमित्तिक आया। तब उससे राजा ने पूछा हे भद्र! मेरी कन्या का पति कौन होगा? गाहा :
भणियं च तेण नर-वर! विज्जाहर-चक्कवट्टिणो एसा ।
होही सयलंतेउर-पवरा अइवल्लहा देवी ।।१८९।। संस्कृत छाया :
भणितं च तेन नरवर ! विद्याधरचक्रवर्तिन एषा । भविष्यति सकलान्तःपुरप्रवराऽतिवल्लभा देवी ।। १८९।।