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________________ गुजराती अनुवाद :__आ देवांगना सन्मान छपवाळी छे, सम्म विचारी पितास योग्य समये मास 'सुरसुंदरी' र प्रमाणे नाम पाड्यूं. हिन्दी अनुवाद : यह सोचकर कि यह देवांगना समान रूपवती है, इसलिए पिता ने मेरा नाम सुरसुन्दरी रखा। गाहा : कमसो पवड्डमाणा कुमारभावम्मि जुवइ जोग्गाओ । गाहाविया कलाओ जाया य कमेण तक्कुसला ।।१८३।। संस्कृत छाया : क्रमशः प्रवर्धमाना कुमारभावे युवतियोग्याः । ग्राहिताः कला जाता च क्रमेण तत्कुशलाः ।।१८३।। गुजराती अनुवाद : __ अनुक्रमे वृद्धि पामती में कुमार पणा मां युवति ने योग्य कलाओ ग्रहण करी अने क्रमपूर्वक तेमां कुशल बनी। हिन्दी अनुवाद : क्रम से बढ़ती हुई कुमारपने में ही मैं युवायोग्य कलाओं को ग्रहण कर उसमें प्रवीण हो गयी। गाहा : अविय। वित्ते नट्टे गीए पत्त-च्छेज्जे य हत्थ-कंडेसु । वीणा-सर-लक्खण-वंजणेसु वायरण-तक्केसु ।।१८४।। जाया वियक्खणा हं बुद्धीए सुर-गुरुस्स सारिच्छा । एक्कम्मि पए लद्धे सेंसं ऊहेमि लद्धीए ।। १८५।। संस्कृत छाया : अपि च । वृत्ते नाट्ये गीते पत्रच्छेधे च हस्तकाण्डेषु । वीणास्वरलक्षणव्यञ्जनेषु व्याकरणतर्केषु ।।१८४।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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