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________________ गाहा : भणिया वच्छे! मा रुय न होई दीवंतरं इमं सुयणु! । हत्थिणपुरं हि एवं एसो राया अमरकेऊ ।।१४६।। संस्कृत छाया : भणिता वत्से ! मा रुदिहि न भवति द्वीपान्तरमिदं सुतनो ! । हस्तिनापुरं येतदेष राजाऽमरकेतुः ।।१४६।। गुजराती अनुवाद : __ अने कडं हे वत्से! (बेटा) तुं रड नहीं, आ कंई बीजो द्वीप नथी, हे सुतनु! आ हस्तिनापुर नगर छे. आ अमरकेतु राजा छे. हिन्दी अनुवाद : और बोली 'हे पुत्री तूं रो नहीं, यह कोई दूसरा द्वीप नहीं है। हे पुत्री! यह हस्तिनापुर नगर है और यह अमरकेतु राजा हैं। गाहा : कमलावई अहंपि हु, सहोयरो होइ तुह पिया मज्झ । वच्छे! तुमंपि अम्हं सुय-पुव्वा नाममेत्तेण ।।१४७।। संस्कृत छाया : कमलावत्यऽहमपि खल, सहोदरो भवति तव पिता मम । वत्से ! त्वमपि अस्माकं श्रुतपूर्वा नाममात्रेण ।।१४७।। गुजराती अनुवाद : हुं पण कमलावति छु. तारा पिता मारा सहोदर छे. हे वत्से! तने पण अमे मात्र नामथी पहेला सांधळी छे. हिन्दी अनुवाद : __ मैं भी कमलावती हूँ। तुम्हारे पिता मेरे सहोदर भाई हैं फिर भी हे पुत्री! मैंने पहले भी तुम्हारा नाम सुना है। गाहा :बहुविह-पओयणेणं कुसग्गनयराओ जो जणो एंतो। सो सव्वो सुरसुंदरि! तुह गुण-निवहं मह कहिंतो ।।१४८।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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