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________________ संस्कृत छाया :बहुविधप्रयोजनेन कुशाग्रनगराद् यो जन आयन् । स सर्वः सुरसुन्दरि ! तव गुणनिवहं मम कथयन् ।।१४८।। गुजराती अनुवाद : वळी हे सुरसुंदरी कार्यवश कुशाय नगरमाथी जे लोको अहीं आवे छे ते सर्वे तारा गुण समुदायने मारी आगळ कहे छे. के, हिन्दी अनुवाद : हे सुरसुन्दरी! अनेक कार्यों से कुशाग्रनगर से जो लोग यहाँ आते हैं सभी . तुम्हारे गुणों को मुझसे कहते हैं कि... गाहा : एवं सुरूव-कलिया एवं पिउणो य वच्छला बाढं । एवं कलासु कुसला एवं दक्खिन्न-दय-जुत्ता ।।१४९।। संस्कृत छाया : एवं सुरूपकलिता एवं पितुश्च वत्सला बाढम् । एवं कलासु कुशला एवं दाक्षिण्यदयायुक्ता ।।१४९।। गुजराती अनुवाद : "सुरसुंदरी स्वरूपवती छे. तेना पितानी बहु ज लाडकी छे, सर्व कलामां कुशल छे तथा दाक्षिण्य तथा दयाथी युक्त छे." हिन्दी अनुवाद : सुरसुन्दरी रूपवान है, अपने पिता की चहेती है, सभी कलाओं में पारंगत दाक्षिण्य तथा दयायुक्त है। गाहा : ता मा कुणसु विसायं एयंपि य पिउ-हरं निजं तुज्झ । अच्छसु वीसत्थ-मणा कीडंती विविह-कीडाहिं ।।१५०।। संस्कृत छाया :तस्मात् मा कुरु विषादमेतदपि च पितृगृहं निजं तव । आस्स्व विश्वस्तमनाः क्रीडयन्ती विविधक्रीडाभिः ।।१५०।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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