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________________ संस्कृत छाया : किं दैव ! अत्र क्रियते स्वकर्मवशगानां नवरं जीवानाम् । जायन्ते दुःसहानि दुःखान्यत्र संसारे ।। ९७ ।। गुजराती अनुवाद : अमरकेतु राजा वड़े आश्वासन कर्मवश जीवोने आ संसारमां दुःसह दुःखो सहन करवा पडे छे. तो हे देव! तेमां शुं करी शकाय ? हिन्दी अनुवाद : अमरकेतु राजा द्वारा आश्वासन हे देवी! कर्म के कारण जीवों को इस संसार में दुसह दुःखों को सहन करना पड़ता है, इसमें क्या किया जा सकता है ? गाहा : स- कयं सुहमसुहं वा इक्को अणुहवइ विविह- जोणीसु । माया पिया य भत्ता बंधु-जणो वावि न हु सरणं । । ९८ ।। संस्कृत छाया : स्वकृतं शुभमशुभं वा एकोऽनुभवति विविधयोनिषु । माता पिता च भर्ता बन्धुजनो वापि न खलु शरणम् । । ९८ । । गुजराती अनुवाद : वळी पोते एकलो ज अनेक प्रकारनी योनिओमां शुभ अथवा अशुभ कर्मने भोगवे छे. दुःखना समये माता-पिता- भाई-बंधुजन वि. कोई पण शरण तु नयी. हिन्दी अनुवाद : वह अकेले अपने ही अनेक प्रकार की योनियों में शुभ या अशुभ कर्म भोगता है। दुःख के समय माता-पिता, भाई-बन्धु आदि कोई भी शरणदाता नहीं होता। गाहा : राग-द्दोस-वसाए असुह- फलं आसि जं कयं कम्मं । तस्स वसाओ सुंदरि ! संपत्ता वसण - रिछोली ।। ९९ ।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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