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________________ गाहा : एयं मएऽणुभूयं सरण-विहूणाए तुम्ह विरहम्मि । निसुएण जेण जायइ दुक्खं पास-ट्ठियाणंपि ।।९५।। संस्कृत छाया : एतन्मयानुभूतं शरणविहीनया तव विरहे । निश्रुतेन येन जायते दुःखं पार्थस्थितानामपि ।।९५।। गुजराती अनुवाद : ___ आ प्रमाणे शरण रहित में आपना विरहमा आवु अत्यंत दुःख अनुभव्यु. जे दुःखने सांधळीने पासे रहेलाओने पण दुःख पेदा कटे तेवं छे. हिन्दी अनुवाद : इस प्रकार शरण रहित मैंने आपके वियोग में ऐसे द:खों का अनुभव किया. यह दुःख जिसे सुनकर पास रहा हुआ दूसरा भी दुःखी हो जाय, ऐसा है। गाहा : इय कमलावइ-भणियं आयनिय अमरकेउ-नरनाहो। बाह-जलाविल-नयणो गुरु-सोगो भणिउमाढत्तो ।।९६।। संस्कृत छाया : इति कमलावतीभणितमाकाऽमरकेतुनरनाथः । बाष्पजलाविलनयनो गुरुशोको भणितुमारब्धः ।।९६।। गुजराती अनुवाद : आ प्रमाणे कमलावती, कहेलुं सांभळीने अमरकेतु राजा अत्यंत शोकवाळा थया अने अश्रुथी सजल नेत्रवाळां कहेवा लाग्या. हिन्दी अनुवाद : ___ कमलावती का कहा हुआ यह वृत्तान्त सुनकर अमरकेतु राजा अत्यन्त दु:खी हो गये और आंसुओं से भरी आँखों के साथ कहने लगे। गाहा :किं देव! इत्थ कीरइ स-कम्म-वसयाण नवरि जीवाण । जायंति दूसहाई दुक्खाइं एत्थ संसारे ।।९७।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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