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गुजराती अनुवाद :
पवनथी कंपता वृक्षोना पांदडाओना सणसणाट अवाजने सिंहना गंभीर ध्वनि समान मानती, धूजता शरीरवाळी, गाढ अंधकारथी व्याप्त ते रात्रिमा ऊंचा-ऊँचा घांस वडे आच्छादित विषम भूमिमां वेग वड़े जता, हे प्रियतम! बहु पापी जीवो घोर नरकमां पड़े छे. तेम हुं पण अजाणतां आ कूवामां एकदम पड़ी गई. ।। विधिः विशेषकम्।। हिन्दी अनुवाद :
हवा से कांपते वृक्षों की पत्तियों की सरसराहट मझे सिंह की गर्जना जैसी लग रही थी, डरी और कांपती शरीरवाली, घने अंधकार वाली रात में ऊँचे-ऊँचे घासों से आच्छादित भूमि पर चलती हुई हे प्रियतम्! मैं उसी प्रकार इस कुएं में अचानक गिर पड़ी जैसे अधिक पाप करने वाले पापी घोर नरक में गिर पड़ते हैं। गाहा :
भवियव्यया-वसेणं न मया गंभीर-जल निबुड्डावि ।
अगडस्स तडिं पाविय तत्थ निलुक्का अहं राय! ।।८९।। संस्कृत छाया :
भवितव्यतावशेन न मृता, गम्भीरजलनिमग्नाऽपि ।
अवटस्य तटीं प्राप्य तत्र निलीनाऽहं राजन् ।।८९।। गुजराती अनुवाद :
उंडा पाणीमां पडवा छतां भवितव्यताना योगे हु मटी नहि अने कूवाना तटने पकड़ी हे राजन्! त्यां हुं छुपाई गई. हिन्दी अनुवाद :
गहरे पानी में गिरने पर भी भाग्य के योग से मैं मरी नहीं और कुँए के किनारे को पकड़कर हे राजन्! वहाँ छुप गयी। गाहा :
मरणे उठिएवि हु सीलं संरक्खियंति तुट्ठ-मणा।
अप्पाणं स-कयत्यं मन्नता सुरह-भय-मुक्का ।।९।। संस्कृत छाया :
मरणे उपस्थितेऽपि खल, शीलं संरक्षितमिति तुष्टमनाः ।। आत्मानं स्वकृतार्थ मन्यमाना सुरथभयमुक्ता ।।१०।।