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________________ गृहीत्वा चैकदिशं चलिता घनतरुवनस्य मध्येन । निशृण्वती बहुधापदभीषणशब्दान् बहुविधान् ।।८५।। त्रिभिः कुलकम्।। गुजराती अनुवाद : कमलावतीनुं निर्गमन रात्री थये छते सकलसैन्य निद्रावश थयुं त्यारे ते आमरणोने लईने आजु-बाजु जोती. अयथी एकदम कंपती शरीरवाळी चोकीदारोने ठगी ने धीमा पगले चालती ते सैन्यनी बहार नीकळी गई. अने एक दिशानं लक्ष्य कटीने गाढ वृक्षोथी व्याप्त स्वा जंगलनी वच्चे घणा जंगली प्राणीओना अनेक प्रकार ना भयंकर शब्दोने सांभळती हुं चाली. विधिः कुलकम्। हिन्दी अनुवाद : कमलावती का निर्गमनरात्रि होने पर जब सभी सैनिक सो गए तब अपने आभूषण लेकर इधरउधर देखती, डर से एकदम कांपते शरीरवाली, चौकीदारों को पता न चले इसलिए धीरे-धीरे चलती उस सैनिक पड़ाव से बाहर आ गयी। घने वृक्षों से व्याप्त ऐसा जंगल जिसमें जंगली प्राणी अनेक प्रकार की आवाजें कर रहे थे, को सुनती उसके बीच से चली। गाहा :पवणाकंपिय-पायव-चलंत पत्ताण सणसणारावं । सीहोरालि-समाणं मन्नती वेविर-सरीरा ।।८६।। वेगेण य गच्छंती घणंधयाराए तीइ रयणीए । दीहर-घण-तण-ओच्छाइयाए विसमाए भूमीए ।।८७।। अवियाणिय-परमत्था झडत्ति पडिया य एत्थ कृवम्मि । पिययम! कय-बहु-पावा जीवा इव घोर-नरयम्मि ।।८८।। संस्कृत छाया : पवनाकम्पितपादपचलत्पत्राणां सणसणारावम् । सिंहौरालीसमानं मन्यमाना वेपमानशरीरा ।।८६।। वेगेन च गच्छन्ती धनान्यकारायां तस्यां रजन्याम् । दीर्घघनतृणावच्छादितायां विषमायां भूमौ ।।८७।। अविज्ञातपरमार्था झटिति पतिता चात्र कूपे । प्रियतम ! कृतबहुपापा जीवा इव घोरनरके ।।८८।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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