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________________ हिन्दी अनुवाद : इसलिए इस स्थिति में मौन रहना ही उचित है बाद में अवसर पाकर उस पापी से दूर हो जाऊँगी। गाहा : इय चिंतिय तुहिक्का अहो मुहं काउं तत्थ थक्का हं। सोवि य दवण ममं निरुत्तरं उढिओ तत्तो ।।८२।। संस्कृत छाया : इति चिन्तयित्वा तूष्णीकाऽधोमुखं कृत्वा तत्रस्थिताऽहम् । सोऽपि च छट्वा मां निरुतरामुत्थितस्ततः ।।०२।। गुजराती अनुवाद : सम विचाटीने मुंगी स्वी हुं नीचुं मुख कटीने त्यां रही ते पण मने निरुत्तर जोईने उठी गयो! हिन्दी अनुवाद : ऐसा विचार कर गूंगी की तरह नीचे मुखकर पड़ी रही। वह भी मुझे निरुत्तर जान उठकर चला गया। गाहा : पत्ताए रयणीए निब्भर-सुत्ते य सयल-सिन्नम्मि । गहिऊण तमाभरणं पासाइं पलोयणमाणा ।। ८३।। निहुय-गईए चलिया भएण कंपंत-तणु-लया गाढं । वंचिय पाहरिए हं नीहरिया ताओ सिन्नाओ ।।८४।। चित्तूण य एग-दिसं चलिया घण-तरु-वणस्स मज्झेणं । निसुणंती बहु-सावय-भीसण-सद्दे बहु-विही (ह?)ए ।।८५।। संस्कृत छाया :प्राप्तायां रजन्यां निर्भरसुप्ते च सकलसैन्ये । गृहीत्वा तदाभरणं पाणि प्रलोकमाना ।।८३।। निभृतगत्या चलिता भयेन कम्पमानतनुलता गाढम् । वञ्चयित्वा प्राहरिकानहं निःसृता तस्मात् सैन्यात् ।।८४।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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