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________________ संस्कृत छाया : तव सतनो ! किरोऽहमाज्ञाकारी च परिजनः सर्वः । गाढानुरागरक्तं किं बहुना ? इच्छ मामिति ।।७७।। गुजराती अनुवाद : हे सुतनो! हुं तारो किंकर छु, सर्व परिजन पण तारी आज्ञाने पाळनार छे. हवे बहु कहेवा वडे शृं? गाढ अनुरागी स्वा मारी इच्छा पूर्ण कर! हिन्दी अनुवाद : हे देवी! मैं तुम्हारा सेवक हूँ। सभी लोग तुम्हारी आज्ञा का पालन करने वाले हैं। अब अधिक क्या कहना! प्रगाढ़ प्रेमी की तरह मेरी इच्छा पूर्ण करो। गाहा :तव्वयणं सोऊणं सहसा वज्जेण ताडियाव अहं । उप्पन्न-गरुय-दुक्खा पिययम! चिंताउरा जाया ।।७८।। संस्कृत छाया : तद्वचनं श्रुत्वा सहसा वज्रेण ताडितेवाऽहम् । उत्पन्नगुरुदुःखा प्रियतम ! चिन्तातुरा जाता ।।७८।। युग्मम्।। गुजराती अनुवाद : तेना ते वचन सांभलीने हे! प्रियतम्! अकळमात् वज्र थी हणायेलानी जेम हुँ अतिशय दुःखवाळी चिंतातुर बनी। हिन्दी अनुवाद : उसका वह वचन सुनकर हे प्रियतम! वज्र से घायल जैसे अतिशय दुःखवाली मैं चिन्तित हो गयी। गाहा : हा! पाविट्ठो एसो बलावि सील-खंडणं काही। सरण-विहूणाइ ममं, ता इण्डिं किं करेमित्ति? ।।७९।। संस्कृत छाया : हा ! पापिष्ठ एष बलादपि शीलखण्डनं करिष्यति । शरणविहीनाया मैम, तस्मादिदानी किं करोमीति ? ।।७९।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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