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बहुमत्वाऽविवेकं भणिता एकान्तसंस्थिता एवम् ।।
मन्मथपीडितदेहः शरणं तव सुतनो ! आलीनः ।।७५।। गुजराती अनुवाद :
सुरथनो दुराचार हे प्रियतम! हवे कोई दिवसे कामथी मूढ स्वा ते पापीस कुलमर्यादाने अवगणीने लज्जाने दूर मूकीन, अविवेक- आचरण करीने सकांतमा रहेली मने कह्यु- हे सुतनो! विकारथी पीड़ित मने तारुं शरण छे. हिन्दी अनुवाद :
सुरथ का दुराचारहे प्रियतम! एक दिन कामभावना से मूढ़ वह पापी कुलमर्यादा और लाज छोड़कर अविवेक पूर्वक आचरण करते हुए मुझसे कहा, हे देवी! काम विकार से पीड़ित मैं तुम्हारी शरण में आया हूँ। गाहा :
निय-यंग-संगमेणं सहलं मह कुणसु-जीवियं अज्ज ।
तुह आयत्ता पाणा सव्वस्सवि सामिणी तं सि ।।७६।। संस्कृत छाया :निजाङ्गसङ्गमेन सफलं मम कुरु जीवितमद्य ।
तवायत्ताः प्राणाः, सर्वस्याऽपि स्वामिनी त्वमसि ।।७६।। गुजराती अनुवाद :
तारा अंगना संगवडे आजे माझं जीवन सफल कर. मारा प्राण तने आधीन छे. आ सर्व राज्यादिकनी पण तुं स्वामिनी छे. हिन्दी अनुवाद :
अपने अंग से लगाकर आज मेरा जीवन सफल कर दो। मेरा प्राण तेरे वश में है। इस सम्पूर्ण राज्य की तू स्वामिनी हो। गाहा :तुह सुयण! किंकरो हं आणा-कारी य परियणो सव्वो। गाढाणुराग-रत्तं किं बहुणा इच्छसु ममंति ।।७७।।