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________________ संस्कृत छाया : इति चिन्तयित्वा भणितं, भगवन् ! यद् भणसि तत्करोमीति । यद्येवं तर्हि वत्से ! प्रवर्तस्व इति तेन भणिताऽहम् ।। ६२ ।। गुजराती अनुवाद : म विचारीने में कहयुं - हे भगवन्! जे आप कहो ते करीश ? जो आ प्रमाणे छे तो हे वत्से ! प्रयाण कर...ए प्रमाणे ते कुलपतिए मने कह्युं. हिन्दी अनुवाद : ऐसा विचार कर मैंने कहा, हे भगवन्! जैसा आप कहेंगे वैसा करूंगी। तब कुलपति ने मुझसे कहा कि प्रयाण करो। गाहा : बहु मन्निय तव्वयणं ताहे चलिया नरिंद! तेण समं । तक्कालुचियं काउं तावसि - संभासणाईयं ।। ६३ ।। संस्कृत छाया : बहुमत्वा तद्वचनं तदा चलिता नरेन्द्र ! तेन समम् । तत्कालोचितं कृत्वा, तापसीसम्भाषणादिकम् ।। ६३ ।। गुजराती अनुवाद : त्यारपछी कुलपतिना वचनने मान्य करी हे राजन् ! ते समयने उचित तापसी साथै वात करीने हुं सुरथ साथे चाली. हिन्दी अनुवाद : तब हे राजन्! कुलपति की बात को उचित मानते हुए तापसी से बात कर सुरथ के साथ चल पड़ी। गाहा : जाव य कंमेण पत्ता एत्थ पएसम्मि ताव सुरहो सो । किंपि मिसं काऊणं थक्को एत्थेव रण्णम्मि ।। ६४ ।। संस्कृत छाया : यावच्च क्रमेण प्राप्तात्र प्रदेशे तावत्सुरथः सः । किमपि मिषं कृत्वा स्थितोऽत्रैवारण्ये ।। ६४ ।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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