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________________ गाहा : भणिया हं कुलवइणा वच्छे! सुरहस्स भासियं निसुयं? । ता वच्चसु सह इमिणा अन्नो पुण दुल्लहो सत्थो ।।६।। संस्कृत छाया : भणिताऽहं कुलपतिना वत्से ! सुरथस्य भाषितं निश्श्रुतम् ? । तदा व्रज सहाऽनेन, अन्यः पुन-दुर्लभः सार्थः ।।६०।। गुजराती अनुवाद : कुलपतिस मने कह्यु, हे वत्से! सुरथनु कहेलु सांथलयु? तेथी आ सुरथ साथे जा, वळी बीजो सार्थ मळवो दुर्लभ छे. हिन्दी अनुवाद : कुलपति ने मुझसे कहा, 'हे वत्स! तुमने सुरथ का कहा हुआ सुना? इसलिए इस सुरथ के साथ जाओ, वैसे भी दूसरा सार्थ मिलना दुर्लभ है।' गाहा : अह चिंतियं मए किं इमेण सह होइ गमणमम्हाणं । जुग्गं अहवा जाणइ भयवं चिय एत्थ जं उचियं ।।६१।। संस्कृत छाया : अथ चिन्तितं मया किमनेन सह भवति गमनमस्माकम् । योग्यमथवा जानाति, भगवान् एवात्र यदुचितम् ।।६१।। गुजराती अनुवाद :___ त्यारे मारा वड़े विचारायु- शुं आनी साथे जq ते मारे योग्य छे, खरोखर तो भगवान कुलपति ज उचित ने जाणे छे... हिन्दी अनुवाद : तब मैंने विचार किया क्या इनके साथ मेरा जाना उचित होगा? वैसे भगवान् कुलपति ही जो उचित है, जानते हैं। गाहा :इय चिंतिऊण भणियं भयवं! जं भणसि तं करेमित्ति । जइ एवं ता वच्छे ! पयट्ट इइ तेण भणिया हं ।।६२।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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