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________________ 26 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 1 जनवरी - मार्च, 2016 " जो परम्परा के साथ मिलकर निरन्तरता का रूप लेती है। अतः नारी-शिक्षा वास्तव में समाज को शिक्षित करना है। उपरोक्त तथ्यों के आलोक में भारतीय साहित्य एवं कला में नारी शिक्षा के प्रमाणों को आज के संदर्भ में रेखांकित करना ही प्रस्तुत शोध पत्र का अभीष्ट है। भारतीय संस्कृति के विकास की दो मूल धारायें रही हैं- वैदिक पौराणिक और श्रमण परम्परा। श्रमण परम्परा के अन्तर्गत बौद्ध एवं जैन धर्म आते हैं। वस्तुतः भारतीय संस्कृति वैदिक-पौराणिक, बौद्ध एवं जैन परम्परा का समन्वित परिणाम है। भारतीय साहित्य में नारी-शिक्षा के प्रभूत प्रमाण उपलब्ध हैं, जहाँ उन्हें पुरुषों के समान शिक्षित करने का उल्लेख हुआ है, साथ ही शिक्षिका के रूप में नारी का उल्लेख महत्त्वपूर्ण है। वैदिक-पौराणिक परम्परा के अन्तर्गत वैदिक काल में स्त्री-शिक्षा अपने उच्चतम् स्तर पर थी। नारी बुद्धि और ज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी थी। बृहदारण्यक उपनिषद् (६/ ४/१७) में कन्याओं द्वारा कुछ मन्त्रों की रचना का उल्लेख मिलता है। इसी उपनिषद् में वैदिक काल का सर्वोत्तम ज्ञान 'ब्रह्मविद्या' की अधिकारिणी के रूप में गार्गी और मैत्रेयी का उल्लेख इस दृष्टि से और महत्त्वपूर्ण हो जाता है। इसी प्रकार अन्य वैदिक साहित्यों में रोमशा, अपाला, उर्वशी, विश्ववारा, सिकता, निबावरी, घोषा, लोपामुद्रा आदि पंडिता स्त्रियों के नामोल्लेख मिलते हैं, जो दर्शन एवं तर्कशास्त्र में निपुण थीं। सूत्र काल में स्त्रियों द्वारा यज्ञ के सम्पादन का उल्लेख नारी शिक्षा और सम्मान की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण है। महाकाव्य काल के अन्तर्गत वाल्मिकी कृत रामायण (२/२०/१५) में कौशल्या के पंडिता होने का उल्लेख हुआ है । यहाँ यह उल्लिखित है कि राम के युवराज पद पर अभिषेक के समय कौशल्या ने यज्ञ किया था। इसी प्रकार महाभारत (३/३०५ -२० ) में माता कुन्ती के 'अथर्ववेद' में पारंगत होने का उल्लेख हुआ है। नारी - शिक्षा के प्रमाण हमें पाणिनि कृत 'अष्टाध्यायी' (५वीं शती ई. पू० ) एवं पातंजलि कृत 'महाभाष्य' (दूसरी शती ई.पू.) में प्राप्त होता है जहाँ कई स्थानों पर पुरुषों के समान नारियों को शिक्षित करने का उल्लेख हुआ है। इसमें कहा गया है कि कन्याओं के आचार्यकरण (उपनयन) के पश्चात् ही वेदों का अध्ययन कराया जाय। पाणिनि व्याकरण का अध्ययन करने वाली स्त्री 'पाणिनिया' तथा आपिशाली व्याकरण का अध्ययन करने वाली छात्रा 'आपिशिला' कहलाती थी । पाणिनि कालीन भारत के अध्ययन से ज्ञात होता है कि इस काल में उपनयन संस्कार के द्वारा ही व्यक्ति विशेष ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य वर्ण के सदस्य माने जाते थे। अष्टाध्यायी में आगे उल्लेख है कि आचार्य की स्त्री को 'आचार्यानी' परन्तु
SR No.525095
Book TitleSramana 2016 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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