SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ... श्रमण परम्परा समन्वित भारतीय परम्परा एवं कला में नारी शिक्षा : 27 स्वतन्त्र रूप से अध्यापन करने वाली स्त्री को 'आचार्या' कहा जाता था। इसमें पुरुष भी निःसंकोच शिक्षा प्राप्त करते थे, जिनका नाम अपनी 'आचार्या' के नाम से प्रभावित होता था, जैसे औदमेधा आचार्या के शिष्य को 'औदमेध' कहा गया है।' महाकाव्य एवं महाभाष्य काल के बाद ऐसा लगता है कि स्मृतियों के काल तक आते-आते औपचारिक शिक्षा के स्थान पर घरेलू एवं अनौपचारिक शिक्षा पर ज्यादा बल दिया जाने लगा, जिससे वे एक सफल गृहणी बन सकें। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में नारी-शिक्षा के साथ ही गणिकावृत्ति को एक सम्मानित व्यवसाय के रूप में प्रस्तुत किया गया है। गणिकायें राज्य प्रशासन की अहम सूत्र होती थीं। अतएव इनके शिक्षण-प्रशिक्षण का सम्पूर्ण व्यय राज्य वहन करता था । गणिका, दासी तथा नर्तकियों को विभिन्न कलाओं का ज्ञान देने वाले आचार्यों की आजीविका का प्रबन्ध नगरों एवं ग्रामों से आने वाली आय द्वारा किया गया था। इन पदों पर अनुभवी गणिकाओं को लोगों द्वारा नियुक्त किया जाता था जो गणिकाओं के महत्त्व को दर्शाता है। गणिकाओं को सामान्यतया गायन, वादन, नृत्य, नाटक करना, नाटक लिखना, चित्रकारी, दूसरे के मन को पहचानना, सुगंधि का निर्माण, माला गूंथना, साज-सज्जा करना आदि कार्यों में प्रशिक्षित किया जाता था । " वात्स्यायन ने भी कामसूत्र में मुख्यतः अनौपचारिक शिक्षा को ही महत्त्व दिया है। इसमें एक सफल गृहणी के लिए मुख्यत: उद्यान में वृक्षारोपण, प्राकृतिक चिकित्सीय औषधियों का ज्ञान, खाना बनाना, कताई-बुनाई, कर्मचारियों को योग्यतानुसार कार्य वितरण, पशुधन की सुरक्षा एवं संरक्षण, आय-व्यय पर नियन्त्रण एवं दृष्टि रखने वाले गुणों से युक्त होने की बात कही गयी है। इसके अतिरिक्त यहाँ विशिष्ट कारणों से स्त्रियों को ६४ कलाओं में पारंगत होने के अन्तर्गत पुस्तक वाचन, औषधि निर्माण, कठिन श्लोक का उच्चारण (दुर्वाचक योग), नाटक एवं आख्यानों का ज्ञान (नाटकख्यानक दर्शनम्), विभिन्न देशों की भाषाओं का ज्ञान एवं शरीर विज्ञान और काम विकास ( व्यायामिकरणम विज्ञानम् जाननाम्) के ज्ञान का होना अनिवार्य बतलाया गया है। आगे इसके महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा गया है कि 'इन गुणों से युक्त होने पर स्त्रियाँ पति के बहिर्गमन अथवा आपदा काल अथवा विधवा होने पर अथवा दूसरे देश में निर्वहन के समय उनके लिए उपहार के समान हैं। " " इनमें से अधिकतर ज्ञान नारी सम्मान, शिक्षा और आत्मनिर्भरता का सन्देश देते हैं जो सम्भवतः आज के आधुनिक वैज्ञानिक सोच वाले समाज की भी आवश्यकता है। नारी-शिक्षा से सम्बन्धित सांकेतिक उल्लेख महाकवि कालिदास कृत अभिज्ञानशाकुन्तलम् (किशोर केलिसमेलम् अंक) में मिलता है जहाँ वन प्रान्तर में स्थित शकुन्तला की
SR No.525095
Book TitleSramana 2016 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy