________________
कारक प्रकरण का तुलनात्मक अध्ययन : कच्चायन और पाणिनि
... 21
च'(२९४) सूत्र द्वारा विशेषण के अर्थ में भी तृतीया विभक्ति का विधान किया गया है । यथा - सुवण्णेन अभिरूपो, तपसा उत्तमो । पाणिनि व्याकरण में 'इत्थंभूतलक्षणे' (२.३.२१) से लक्षणवाची शब्दों में तृतीया का विधान किया गया है।
सम्प्रदान- कारक
अष्टाध्यायी में सम्प्रदानसंज्ञक १० सूत्र तथा चतुर्थी विभक्ति विधायक ५ सूत्र हैं तथा कच्चायन व्याकरण में सम्प्रदान संज्ञक २ सूत्र तथा चतुर्थी विभक्ति के २ सूत्र हैं। 'कर्मणा यमभिप्रैति स सम्प्रदानम् ' (१.४.३२) की अपेक्षा कच्चायन के 'यस्स दातुकामो रोचते धारयते वा तं सम्पदानं ' (२७८) सूत्र में अधिक स्पष्टता है। जिसे देने की इच्छा हो, जिसके प्रति रुचि हो अथवा जिसके लिए (कोई वस्तु) ऋण स्वरूप धारण की जाय, ऐसे कारक की सम्प्रदान संज्ञा होती है । कच्चायन के इस सूत्र में पाणिनि के तीन सूत्रों (कर्मणा यमभिप्रैति स सम्प्रदानम्, रुच्यार्थानां प्रीयमाणः, धारेरुत्तमर्णः) का समावेश है। 'सिलाघहनुठासपधारपिहकुधदुहिस्सासूयराधिक्खपच्चासुण अनुपतिगिणपुब्बकत्तारोचनत्थतुमत्थालमत्थमञ्जनादरप्पाणिनि गत्यत्थकम्मनिसंसनत्थसम्मुतिभिय्य सत्तम्यत्थेसु च ' (२७९) सूत्र में पाणिनि के आठ सूत्रों (श्लाघहनुस्थाशपां ज्ञीप्स्यमानः, धारेरुत्तमर्णः, स्पृहेरीप्सितः क्रुद्धद्रुहोरुपसृष्टयो कर्म, राधीक्ष्योर्यस्य विप्रश्नः, प्रत्याङ्भ्यां श्रुवः पूर्वस्य कर्ता, अनुप्रतिगृणश्च, आगे अन्य सूत्र भी सम्भव हैं। ) का समावेश है।
,
अपादान - कारक
‘ध्रुवमपायेऽपादानम्’(१.४.२४) सूत्र की अपेक्षा कच्चायन व्याकरण का 'यस्मादपेति भयमादत्ते वा तदपादानं’(२७३) सूत्र समझने में सरल अनुभूत होता है। पाणिनि सूत्र आकार में लघु और अर्थ में गम्भीर है जबकि कच्चायनसूत्र बृहत्काय होते हुए भी अर्थ में सरल एवं स्पष्ट है । जैसे- कच्चायन का अपादान संज्ञक एक सूत्र है - “दूरन्तिकद्धकालनिम्माणत्वालोपदिसायोगविभत्तारप्पयोगसुद्धप्पमोचनहेतुविवित्तप्पमाणपुब्बयोगबन्धन गुणवचनपञ्हकथनथोकाकत्तसु च ' (२७७) अर्थात् दूरार्थ में, समीपार्थ में, अध्व-परिच्छेद में, काल-परिच्छेद में कर्म तथा अधिकरण में होने वाले 'त्वा' के लोप में, दिशायोग में, विभाग में, आरति शब्द के प्रयोग में, शुद्धार्थ में, प्रमोचनार्थ में, हेत्वर्थ में, अलग होने के अर्थ में, प्रमाण के अर्थ में, 'पुब्ब' शब्द के योग में, बन्धन में, गुणकथन में, प्रश्न में, कथन में तथा स्तोक (थोड़ा) एवं कर्तृभिन्न आदि अर्थों के प्रयोग में कारक अपादान संज्ञक होता है। इस सूत्र में अपादान संज्ञक होने की सभी स्थितियां एक साथ दी गई हैं।