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________________ 20 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 1, जनवरी-मार्च, 2016 है- 'कर्तुरीप्सिततमं कर्म'(१.४.४९) अर्थात् कर्ता को जो ईप्सिततम हो, उसकी कर्मसंज्ञा होती है। इसके अतिरिक्त कर्मसंज्ञक सूत्र है- अधिशीस्थाऽऽसां कर्म, अभिनिविश्च, उपान्वध्याङ्वसः, तथायुक्तं चानीप्सितम्, अकथितं च, गतिबुद्धिप्रत्यवसानार्थशब्दकर्माकर्मकाणामणि कर्ता स णौ तथा हक्रोरन्यतरस्याम्। (१.४.४६-५३) 'कालद्धानमच्चन्त संयोगे' (३००) से 'कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे' (२.३.५) तथा कम्मप्पवचनीययुत्ते' (३०१) से 'कर्मप्रवचनीययुक्ते द्वितीया' (२.३.८) पूर्णत: सदृश है। ‘गतिबुद्धिभुजपठहरकरसयादीनं कारिते वा' (३०२) सूत्र से 'गतिबुद्धिप्रत्यवसानार्थशब्दकर्माकर्मकाणामणि कर्ता स णौ' (१.४.५२) सूत्र तुलनीय है। वैयाकरण कच्चायन ने गति, बुद्धि, भुज, पठ्, हर, कर, सय आदि धातुओं के प्रयोग में कारित (प्रेरक कर्ता) में विकल्प से द्वितीया विभक्ति स्वीकार की है। आचार्य पाणिनि गति, बुद्धि आदि के अर्थ वाली सभी धातुओं का समावेश अपने सूत्र में करते हुए णिजन्त कर्ता की बिना विकल्प के साथ कर्म संज्ञा करते हैं, तदनन्तर द्वितीया विभक्ति का विधान करते हैं। करण-कारक कच्चायन कृत पालि व्याकरण में करण संज्ञक १ सूत्र तथा तृतीया विधायक ७ सूत्र निरूपित हैं जबकि पाणिनिकृत संस्कृतव्याकरण में करण संज्ञक ३ सूत्र तथा तृतीया विधायक ६ सूत्र निरूपित हैं। क्रिया की सिद्धि में जो सबसे अधिक उपकारक होता है, उसकी 'साधकतमं करणम्' (१.४.४२) सूत्र से करण संज्ञा विहित है। कच्चायन व्याकरण में सूत्र एवं वृत्ति में करण संज्ञा को इस प्रकार परिभाषित किया गया है-'येन वा करियते तं करणं',(२८१) वृत्ति- येन वा करियति, येन वा पस्सति, येन वा सुणाति तं कारकं करणसझं होति' अर्थात् जिसके द्वारा किया, देखा या सुना जाय, उस कारक की करण संज्ञा होती है। ‘सहयुक्तेऽप्रधाने' (२.३.१९) सूत्र द्वारा सह के योग में अप्रधान में तृतीया होती है, जबकि कच्चायन व्याकरण में अप्रधान की चर्चा नहीं करते हुए सूत्र दिया गया है-'सहादियोगे च'(२८९) । ‘करणे ततिया' (२८८), 'कत्तरि च' (२९०)- इन दो सूत्रों को एक में ही समाविष्ट कर आचार्य पाणिनि सूत्र देते हैं- 'कर्तृकरणयोस्तृतीया' (२.३.१८)। 'हेत्वत्थे च' (२९१) सूत्र ‘हेतौ' (२.३.२३) तथा 'येनङ्गविकारो' (२९३) सूत्र 'येनाङ्गविकारः' (२.३.२०) के सदृश है। पालिभाषा में 'तेन कालेन, तेन समयेन' आदि उद्धरणों में सप्तमी के अर्थ में तृतीया विभक्ति दिखाई पड़ती है, जिसे सूत्र में निबद्ध कर कहा गया है- 'सत्तम्यत्थे च'(२९२)। 'विसेसने
SR No.525095
Book TitleSramana 2016 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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