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22 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 1, जनवरी-मार्च, 2016
कच्चायन व्याकरण में अपादानसंज्ञक ५ सूत्र और पंचमी विभक्ति विधायक २ सूत्र हैं, वहीं अष्टाध्यायी में ८-८ सूत्र है । 'रक्खणत्थानमिच्छितं ' (२७५) और 'येन वादस्सनं' (२७६) सूत्र क्रमशः 'वारणार्थानामीप्सितः' (१.४.२७) और ‘अन्तर्धौयेनादर्शनमिच्छति' (१.४.२८) के सदृश हैं।
अधिकरण-कारक
पाणिनि जहाँ 'आधारोऽधिकरणम्' (१.४.४५) सूत्र से आधार की अधिकरण संज्ञा करते हैं. वहीं कच्चायन ' योधारो तमोकासं ' (२८०) सूत्र से आधार की ओकास अर्थात् अवकाश संज्ञा करते हैं। व्यापक, औपश्लेषिक और वैषयिक- ये तीन अधिकरण प्रसिद्ध हैं। कच्चायन आधार के चार भेद करते हुए कहते है- 'स्वाधारो चतुब्बिधो - व्यापिको ओपसिलेसिको, वेसयिको, सामीपिको ति' (२८० की वृत्ति) । चतुर्थ सामीपिक आधार के उदाहरण वे इसप्रकार देते हैं - गंगायं घोसो तिट्ठति, वने हत्थिनो चरन्ति आदि। ‘सामिस्सराधिपतिदायादसक्खिपतिभूपसूतकुसलेहि च' (३०५ ) पाणिनि के ‘स्वामीश्वराधिपतिदायादसाक्षिप्रतिभूप्रसूतैश्च' (२.३.३९), 'आयुक्तकुशलाभ्यां चाऽसेवायाम्' (२.३.४०)- इन दो सूत्रों से तुल्य है। 'निद्धारणे च' (३०६), 'यतश्च निर्धारणम्' (२.३.४१) से, अनादरे च' (३०७) ' षष्ठी चाऽनादरे' से, ‘कालभावेसु च’ (३१५) ‘यस्य च भावेन भावलक्षणम्' (२.३.३७) से समतुल्य है। कच्चायन व्याकरण में अधिकरण संज्ञक सूत्र १ एवं सप्तमी विभक्ति विधायक सूत्र ५ है तथा पाणिनि व्याकरण में अधिकरण संज्ञक १ सूत्र है तथा सप्तमी विभक्ति विधायक १० सूत्र है।
षष्ठी विभक्ति
पाणिनि ने 'कारके' के अधिकार में 'षष्ठी शेषे' (२.३.५०) को परिगणित नहीं कर उसे विभक्ति मात्र ही स्वीकार किया है। जबकि कच्चायन व्याकरण में कारक के क्रम में इसे रखा गया है, स्वामी संज्ञा करने का सूत्र है - 'यस्स वा परिग्गहो तं सामि' (२८५) तथा इसकी वृत्ति में कहा है- 'यस्स वा परिग्गहो तं सामिसञ्चं होति' । तदनन्तर 'सामिस्मिं छट्ठी' (३०३) सूत्र से 'षष्ठी' विभक्ति की गई है। पालि भाषा में द्वितीया, तृतीया, पंचमी और सप्तमी के अर्थ में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग देखा जाता है। अष्टाध्यायी में २४ सूत्रों के अन्तर्गत षष्ठी विभक्ति को निरूपित किया गया है। स्मरणार्थक धातुओं में, प्रतियत्न के अर्थ में, रोग अर्थ वाली धातुओं में, हिंसार्थक में, क्रय-विक्रय के व्यवहार में, द्यूत के अर्थ में, कृत् प्रत्यय के साथ कर्ता-कर्म में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग बतलाया गया है। (२.३.५०-७३)