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________________ भारतीय दार्शनिक परम्परा में पारिस्थितिकी : जैन परम्परा के विशेष सन्दर्भ में 13 अर्थात् सभी जीवों का अस्तित्व परस्पर एक दूसरे पर आश्रित है या सभी एक दूसरे के पूरक है। जैसे - वृक्ष हमें स्वच्छ और शुद्ध वायु, जल, ईंधन आदि देते हैं जो जीवनोपयोगी है और हम उनके लिये कार्बन-डाई-आक्साइड के रूप में जीवनोपयोगी तत्त्व देते हैं। जैन मान्यतानुसार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जीवत्व से पूर्ण है । जगत् में ऐसा कोई भी नहीं जिसमें जीवत्व न हो । जैन धर्म 'धृतिः क्षमा दमोsस्तेयं' आदि दशविध होने के साथ एक आत्मलक्षी धर्म है, अपनी साधना में जीव को सर्वाधिक महत्त्व देता है। क्योंकि जीव ही मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग के कारण बन्धन में आता है और सम्यक्त्व, विरति, अप्रमाद, अकषाय और योगगुप्ति इन पांच हेतुओं के कारण मुक्ति को प्राप्त होता है। अहिंसा और दया इसके प्रमुख पर्यावरणीय आधार हैं। जैन आध्यात्मिक विकासक्रम को देखें तो जीव प्रथम गुणस्थान मिथ्यात्व में मिथ्यात्वमोहनीय कर्म के तीव्रतम उदय के कारण विपरीत दृष्टि वाला हो जाता है । वह दुःख में भी सुख देखता है और तदहेतु नाना उपक्रम करता है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ भी वह उसी सुख की मृगमरीचिका के कारण राग-द्वेष युक्त हो करता है। जैन धर्म का मोक्ष पथिक सम्यक्त्व प्राप्त होने पर आसक्ति, ममता, अहंकार से ऊंचा उठकर अनासक्त या वीतराग हो जाता है। जंगम तथा स्थावर सभी प्राणियों में उसमें समता का उदार भाव परिव्याप्त हो जाता है। निम्मम्मो निरहंकारो निस्संगो चत्तगारवो । समो य सव्वभूएषु तसेसु थावरेसु च । । लाभालाभे सुहे दुक्खे जीविए मरणे तहा। समो निन्दा पसंसासु तहा माणावमाणओ ।। १९ वह लाभ या अलाभ, सुख या दुःख, जीवन या मृत्यु, निन्दा या प्रशंसा, मान या अपमान में एक समान रहता है। जीवन में शान्त भाव परिव्याप्त हो जाता है। वह शरीर में रहकर भी नहीं रहता। जैन अध्यात्म साधना के परम साधक श्रीमद् राजचन्द्र लिखते हैं देह छतां जेहनी दशा, वरते देहातीत । ते ज्ञानीना चरण मा हो वन्दन अगणीत । २० अनासक्त में समभाव आ जाता है, वह संग्रह वृत्ति से दूर हो जाता है जो पर्यावरण असंतुलन और प्रदूषण का मुख्य हेतु है। जैन धर्म ने प्रकृति के साथ तादात्म्य तथा पर्यावरण को अत्यन्त गहराई से समझा और उसे धर्म एवं मानवता से जोड़ दिया। प्रकृति के साथ तादात्म्य जैन धर्म की एक विशेषता है।
SR No.525095
Book TitleSramana 2016 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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