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________________ गाहा : सो समरकेउ-जीवो सागरमेगं तु अट्ठ-पलिएहिं । अब्भहियं अणुभविउं देव-भवे अह चुओ तत्तो ।।५५।। संस्कृत छाया : स समरकेतुजीवः सागरमेकं तु अष्टपल्योपमैः । अभ्यधिकमनुभूय देवभवेऽथ च्युतस्ततः ।।५५।। गुजराती अनुवाद : ते समरकेतु नो जीव चे सागटोपम अने ऊपर आठ पल्योपमनुं देवर्नु आयुष्य पूलं कटीने त्यांथी च्यवीने। हिन्दी अनुवाद :___वह समरकेतु जीव दो सागरोपम और आठ पल्योपम की देव की आयु पूर्ण कर वहाँ से च्यवित होकर.... गाहा : एत्थेव भरह-खेत्ते कुसग्ग-नयरम्मि भइकित्तिस्स । रन्नो पिय-महिलाए सुबंधुदत्ताए कुच्छीए ।।५६।। संस्कृत छाया : अत्रैव भरतक्षेत्रे कुशासनगरे भद्रकीर्तेः । राज्ञः प्रिय-महिलायाः सुबन्युदत्तायाः कुक्ष्याम् ।।५६।। गुजराती अनुवाद : ___ आज भरतक्षेत्रमा कुशायनगरमां भद्रकीर्ती महाराजनी सुबंधुदत्ता नामनी राणीनी कुक्षि मां आव्यो। "हिन्दी अनुवाद : इस भरत क्षेत्र के कुशाग्रनगर में भद्रकीर्ति महाराज की सुबंधुदत्ता नामक रानी की कोख में आया। गाहा : उप्पन्नो सो देवो जाओ य कमेण दारओ तत्तो । धणवाहणोत्ति नामं विहियं से उचिय-समयम्मि ।। ५७।। वडंतो य कमेण पत्तो अह जोव्वणं जणाणंदं । अहिसिंचिय तं रज्जे जाओ समणो पिया तस्स ।। ५८।।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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