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________________ संस्कृत छाया : व!गृहभित्यां प्रच्छन्नोऽऽस्ते प्रलीनः सः । कृत्वा गोस (प्रातः) कृत्यं समागतस्तत्र युवराजः ।।२८।। गुजराती अनुवाद : _ठल्लानी जगामां छूपीीते दिवालनी आडमां ते छुपाई गयो, त्यां युवराज आव्यो। हिन्दी अनुवाद : शौचालय की जगह में वह दीवाल की आड़ में छुप गया। वहाँ युवराज आये। गाहा : दीवय-वग्ग-करहिं नरेहिं उज्जोइएण मग्गेणं । वच्चो-हर-गमणिच्छा अह जाया राय-उत्तस्स ।।२९।। संस्कृत छाया : दीपकवर्ग-कर-नरै-रूद्योतितेन मार्गेण । वक़गृह-गमनेच्छाऽथ जाता राजपुत्रस्य ।।२९।। गुजराती अनुवाद : दीपकों द्वारा प्रकाशित थयेला मार्ग वड़े युवराज ठल्ले जवानी इच्छा वाळा थया हता। हिन्दी अनुवाद : चिरागदान द्वारा प्रकाशित रास्ते से युवराज को शौच जाने की इच्छा हुई। गाहा : पुरिसेहिं तत्थ दिवो वच्चो-हर-संठिओ स दुट्ठ-मई। आयटुंतो खग्गं गहिओ बद्धो य सहसत्ति ।।३०।। संस्कृत छाया : पुरुषस्तत्र दृष्टो वर्चीगृह-संस्थितः स दुष्टमतिः । आकर्षन् खड्गं गृहीतो बच सहसेति ।।३०।। गुजराती अनुवाद : त्यां पुरुषों ते भूमिमां दुष्ट मतिवाला कपिल ने जोयो जेना हाथमां तलवार हती, तेथी तरतज तेने पकड़ी ने बांधी दीयो।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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