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गाहा :
ता रयणीए भवणे इमस्स गंतूण गहिय-करवालो।
छिंदामि उत्तिमंगं जेण मणं निव्वुइं लहइ ।।२६।। संस्कृत छाया :
तस्माद्रजन्यां भवनेऽस्य गत्वा गृहीतकरवालः ।
छिनम्युत्तमाकं येन मनो निवृत्तिं लभते ।।२६।। गुजराती अनुवाद :
तेथी रात ना तलवार लईने आंना महेलमा जईने अनु मस्तक छेदि नाखिश तो मने शांति मळसे । हिन्दी अनुवाद :
इसलिए रात को तलवार लेकर इसके महल में जाकर इसका सिर काट लूंगा, तभी शान्ति मिलेगी। गाहा :
रोइज्माणोवगओ एवं सो चिंतिऊण रयणीए ।
गहियाउहो पविट्ठो वास-हरे समरकंउस्स ।।२७।। संस्कृत छाया :
रौद्रध्यानोपगत एवं स चिन्तयित्वा रजन्याम् ।
गृहीतायुधःप्रविष्टो वासगृहे समरकेतोः ।।२७।। गुजराती अनुवाद :____ौद्रध्यानधी वश थयेलो आ प्रमाणे चिंतन कटीने रात्रिमा शस्त्र लईने समरकेतु ना महेलमा प्रवेश्यो। हिन्दी अनुवाद :
रौद्र ध्यान के वश में हुआ वह इस प्रकार चिंतन करता हुआ शस्त्र लेकर समरकेतु के महल में प्रवेश किया।
गाहा :
वच्चो-हर भित्तीए पच्छन्नो अच्छए पलीणो सो । काऊण गोस-किच्चं समागओ तत्थ जुव-राया ।।२८।।