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संस्कृत छाया :
जिनवचन - भावितात्मानौ सहोदरौ द्वावपि स्नेहसंयुक्तौ । पालयतो देशविरतिं राज्यधुरं तथा च नीत्या ।। १९ ।। गुजराती अनुवाद :
जिनवचन थी भावित ते चंने भाइओ परस्पर प्रेम वाळा : देशविरति पाळता राज्यनी धूराने पण नीतिपूर्वक पाळता हता ।
हिन्दी अनुवाद :
जिनवचन से भावित उन दोनों भाइयों में परस्पर प्रेम था। वे देशविरति प्राप्त कर राज्य का प्रशासन भी नीतिपूर्वक करते थे।
गाहा :
अत्थाणमुवगयाणं नाहिय-वाई समागओ कविली । वज्जरइ नत्थि जीवो न य सव्वन्नू न नेव्वाणं ।। २० ।। संस्कृत छाया :
आस्थानमुपगतयो-र्नास्तिकवादी समागतः कपिलः । कथयति नास्ति जीवो न च सर्वज्ञो न निर्वाणम् ।। २० ।।
गुजराती अनुवाद :
एक वखत सभामां चंने बेठा हता त्यारे कपिल नामनो नास्तिक आव्यो जेणे जीव, सर्वज्ञ अने मोक्षनो निषेध कर्यो हतो ।
हिन्दी अनुवाद :
एक बार सभा में दोनों बैठे हुए थे, तभी कपिल नाम का एक नास्तिक वहाँ आया जो जीव, सर्वज्ञ और मोक्ष का निषेध करता था।
गाहा :
जिण - मय- सत्यत्य - वियाणएण जुवराइणा जिओ वाए । दिट्ठत- हेड - कारण - नाणाविह जुत्ति - निवहेण ।। २१ । ।
संस्कृत छाया :
जिनमत - शास्त्रार्थ - विज्ञायकेन युवराजेन जितो वादे ।
दृष्टान्त हेतु कारण- नानाविध- युक्तिनिवहेन ।। २१ । ।
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