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________________ हिन्दी अनुवाद : ___ इस प्रकार मेरे ऐसा कहे जाने पर वह भवनपति देव घबराया हुआ तुरन्त वहाँ से भागा। इतनी देर में शुक्लध्यान में प्रविष्ट उस मुनि को मोहनीय कर्म के नाश से श्रेष्ठ केवलज्ञान, उत्पन्न हुआ और विनयपूर्वक मैंने उनका केवलज्ञान महोत्सव किया। गाहा : सोउं दुंदुहि-सहं देवा मणुया य आगया बहवे । कहिओ तेसिं धम्मो केवलिणा मोक्ख-सुह-हेऊ ।।१५।। संस्कृत छाया : श्रुत्वा दुन्दुभि-शब्दं देवा मनुजाचाऽऽगता बहवः । कथितस्तेभ्यो धर्मः केवलिना मोक्षसुखहेतुः ।।१५।। गुजराती अनुवाद : दुंदुभिनो नाद सांभळीने घणा देवो अने मनुष्यो आव्या त्यारे केवली भगवंते मोक्ष ना कारणवाळो अवो धर्मनो उपदेश आप्यो। हिन्दी अनुवाद : दुंदुभि की आवाज सुनकर अनेक देव और मनुष्य आ गए। तब केवली भगवंत ने मोक्ष के कारणरूप धर्म का उपदेश किया। गाहा : पत्थावं लहिऊणं पुट्ठो सो केवली मए एवं । भयवं! किं अवरद्धं इमस्स देवस्स तुम्हेहिं ।।१६।। संस्कृत छाया : प्रस्तावं लब्ध्वा पृष्टस्स केवली मया एवम् । भगवन्! किमपराद्धमस्य देवस्य युष्माभिः ।।१६।। गुजराती अनुवाद : त्यारे अवसर मेळवी ने में केवली भगवतो ने पूछयूं के आपे आ देवनो शुं अपराध को हतो। हिन्दी अनुवाद : तब अवसर मिलने पर मैंने केवली भगवंत से पूछा के इस देव का आपने कौन सा अपराध किया था।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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