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________________ श्रीमद्धनेश्वरसूरिविरचितं सुरसुंदरीचरिअं नवम परिच्छेदः गाहा : अह भणइ चित्तवेगो सुरवर! मह कहसु केण कज्जेण । तइया मणिं समप्पिय कत्थ गओ आसि तुरियगई? ।।१।। संस्कृत छाया : अथ भणति चित्रवेगः सुरवर! मम कथय केन कार्येण । तदा मणिं समर्प्य कुत्र गतोऽसि त्वरित-गतिः ।।१।। गुजराती अनुवाद : हवे चित्रवेग कहें छे, हे श्रेष्ठ देव! आप मने कहो के कया कार्य थी ते वखते मणीने आपीने तमे उतावळमां क्यां गया हता? हिन्दी अनुवाद : अब चित्रवेग कहता है हे श्रेष्ठदेव! आप मुझे बताइए कि उस समय मणि देकर बड़ी जल्दी में आप कहाँ गए थे? गाहा : तो भणइ सुरो सुंदर! निसुणसु एयंपि वज्जरिज्जतं । अज्ज अहं आणत्तो ससिप्पहेणं तु देवेण ।। संस्कृत छाया : ततो भणति सुरः सुन्दर! निःशृणु एतदपि कथ्यमानम् । अघाऽहमाज्ञप्तः शशीप्रभेन तु देवेन ।।२।। गुजराती अनुवाद : __ त्यारे ते देवे कां! 'हे सुन्दर, ते वात ने कहेतो तसे मने सांधळो! हुं आजे शशिप्रय नामना देव बड़े आदेश प्राप्त करायो छु। हिन्दी अनुवाद : तब उस देव ने कहा, हे सुन्दर, तुम वह बात कहते हुए मुझे सुनो! मैं आज शशिप्रभ नामक देव से आदेश प्राप्त कराया हूँ।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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