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________________ सम्पादकीय आज कल असहिष्णुता को लेकर देश में काफी बहस चल रही है। ऐसा लगता है कि भारत इसके पहले कभी इतना असहिष्णु नहीं रहा जितना आज हो गया है। तभी तो अनेक साहित्यकार, फिल्मकार, शिक्षाविद्, वैज्ञानिक अपनी योग्यता से हासिल किये गये अपने पुरस्कार वापस लौटा रहे हैं। यह अलग बात है कि उनमें से अब कुछ लौटाया पुरस्कार वापस ले रहे हैं। असहिष्णुता की जब भी बात उठती है तो उसका सम्बन्ध कहीं न कहीं धर्म से अवश्य होता है। आज भी जो बहस चल रही है वह धर्म के इर्द-गिर्द ही है। असहिष्णुता है क्या? वस्तुत: असहिष्णुता का अर्थ है- किसी धर्म, जाति, पन्थ आदि के विचारों को किसी के ऊपर थोपे जाने को सहन न किया जाना। किन्तु आज भारत में असहिष्णुता किसी विशेष वर्ग और उसके धर्म से जोड़कर देखी जा रही है। दादरी और पश्चिम बंगाल के मालदा के कालियाचक की कतिपय घटनायें इसका ताजा उदाहरण हैं। इसका कारण है कि वर्तमान सन्दर्भ में असहिष्णुता का सम्बन्ध धर्म से कम राजनीति से अधिक हो गया है। स्वार्थी व्यक्ति और संगठन अपने निहित स्वार्थ हेतु भारत को असहिष्णु राष्ट्र का दर्जा देकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब कर रहे असहिष्णुता का समाधान है धार्मिक सहिष्णुता जो जैन धर्म-दर्शन की जीवन रेखा है। आज का मनुष्य प्रत्येक समस्या पर तार्किक दृष्टि से विचार करता है किन्तु दुर्भाग्य यह है कि इस बौद्धिकता के बावजूद भी एक ओर अंधविश्वास और रूढ़िवादिता कायम है तो दूसरी ओर वैचारिक संघर्ष अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया है। आज प्रत्येक धर्म सम्प्रदाय, प्रत्येक राजनैतिक दल और प्रत्येक वर्ग अपने हितों की सुरक्षा के लिये दूसरे के अस्तित्व को समाप्त करने पर तुला हुआ है। असहिष्णुता और वर्ग विद्वेष फिर चाहे वह धर्म के नाम पर हो, राजनीति के नाम पर हो, सेक्यूलरिज्म के नाम पर हो अथवा राष्ट्रीयता के नाम पर ही क्यों न हो, हमें विनाश के गर्त की तरफ ही लिये जा रहे हैं। धर्म का अवतरण मनुष्य को सुख और शान्ति प्रदान करने के लिये हुआ है किन्तु हमारी मतान्धता और उन्मादी वृत्ति के कारण धर्म के नाम पर मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद की दीवारें खड़ी की जा रही हैं। धर्म भावना प्रधान होता है और भावनाओं को उभारना सहज होता है। इसीलिये मतान्ध, उन्मादी और स्वार्थी तत्त्वों ने धर्म को सदैव अपने हितों की पूर्ति का साधन बनाया है और आज भी बना रहे हैं।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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