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________________ जैन परम्परा के परिप्रेक्ष्य में विवाह पद्धति एवं वर्ण व्यवस्था : 19 'युक्तितो वरणविधानम् अग्निदेवद्विजसाक्षिकं च पाणिग्रहणं विवाह'४ अर्थात् युक्ति से जो वरण का विधान है तथा अग्निदेव और ब्राह्मण की साक्षी में जो कन्या के हाथ को ग्रहण किया जाता है वह विवाह है। यहाँ आचार्य सोमदवसूरि वैदिक परम्परा की ओर झुके हुये प्रतीत होते हैं। क्योंकि जैनशास्त्रों में जहाँ देव, शास्त्र और गुरु की साक्षी पूर्वक कन्या के वरण का विधान है, वहीं आचार्य सोमदेवसूरि अग्निदेव एवं ब्राह्मण की साक्षी पूर्वक कन्यावरण की बात करते हैं। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि आचार्य सोमदेवसूरि का एक मन्त्र वाक्य है कि सर्व एव हि जैनानां प्रमाणं लौकिको विधिः। यत्र सम्यक्त्वहार्निन यत्र न व्रतदूषणम् ।। अर्थात् जहाँ सम्यग्दर्शन में किसी भी प्रकार का दोष न लगता हो तथा गृहीत व्रतों में दूषण न लगता हो ऐसे सभी कार्यों में लोक प्रमाण है। अर्थात् जैसी लोक व्यवस्था है तथैव सभी जैन धर्मावलम्बियों को स्वीकार करना चाहिये। इससे अन्य चाहे जो भी सिद्ध हो, किन्तु सोमदेवसूरि की दृष्टि में विवाह एक लोक व्यवस्था है, लौकिक धर्म है। अत: लोकाचार के अनुसार ही उन्होंने अग्निदेव एवं ब्राह्मण की साक्षी पूर्वक कन्यावरण को विवाह कहा है। वैदिक धर्मग्रन्थों में विवाह आठ प्रकार का बतलाया गया है ब्राह्मो दैवस्तथैवार्षः प्राजापत्यस्तथासुरः। गान्धर्वो राक्षसश्चैव पैशाचश्चष्टमोऽधमः।। अर्थात् ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गान्धर्व, राक्षस और पिशाच - ये आठ प्रकार के विवाह हैं। ब्राह्म- इसमें आभूषणों से अलंकृत कन्या वर से बिना कुछ लिये उसे दान कर दी जाती है। यह सर्वश्रेष्ठ है। दैव- इसमें कन्या यज्ञ कराने वलो ऋत्विज् को दे दी जाती है। आर्ष- इसमें दुलहिन का पिता वर से एक या दो जोड़ी गायें प्राप्त करके उसे दे देता है। प्राजापत्य- इसमें लड़की का पिता वर से बिना किसी प्रकार का उपहार लिये केवल इसलिये कन्यादान करता है कि जिससे वह सानन्द, श्रद्धा और भक्तिपूर्वक साथ-साथ रहकर दाम्पत्य जीवन बिताये।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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