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________________ पुरातनप्रबन्धसंग्रह की ऐतिहासिक मूल्यवत्ता : 15 फुड छंडि न जाइ इहु लुब्भिउ बारइ पलकउ खल गुलह, नं जाणउं चंदबलद्दिउ किं न वि छुट्टइ इह फलह।। एक बान पहुमी नरेस कैमासह मुक्यौ। डर उप्पर थरहन्यौ वीर कष्षंतर चुक्यौ।। बियौ बान संधान हन्यौ सोमेसर नंदन। गढौ करि निग्रह्यौ षनिव् गड्यौ संभरि धन।। थल छोरि न जाइ अभागरौ गऽयौ गुन गहि अग्गरौ। इम जपै चंदबरद्दिया कहा निघट्टै इय प्रलौ।।" यदि हम प्रयुक्त प्रबन्ध के पृथ्वीराज से सम्बन्धित प्रकरण के अनुसार इसे संवत् १२९० (१२३३ई०) के पूर्व का मान लें, जिसके स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं है, तो 'पृथ्वीराजरासो' की ऐतिहासिकता स्वयं सिद्ध हो जाती है जो इस महान नरेश की मृत्यु के ४०-५० वर्षों के अन्दर ही रची गई प्रतीत होती है। पृथ्वीराजप्रकरण तत्कालीन जनमानस में इतना लोकप्रिय था कि चन्दबरदाई की मृत्यु के बाद भी पृथ्वीराजरासो में परिवर्द्धन/संशोधन होते रहे परन्तु उसकी ऐतिहासिकता असंदिग्ध है। इसी प्रकार इस संग्रह में तमाम ऐतिहासिक बातें भरी पड़ी हैं जिनके अन्वेषण की आवश्यकता है। चौलुक्य वंश के जयसिंह सिद्धराज एवं कुमारपाल के समय की अनेक घटनाएँ इसमें सुरक्षित हैं। पूर्व में यह उल्लेख हो चुका है कि चरित ग्रन्थों में नायक के गुणों का ही प्रदर्शन होता है लेकिन प्रबन्धों में लेखक इस बन्धन से मुक्त होता है। वह नायक की दुर्बलताओं को भी समाज के सामने प्रस्तुत करता है। उदाहरणार्थ- 'अजयपालप्रबन्ध' में राजा के निर्दयी एवं असहिष्णु चरित्र को दर्शाया गया है। कुमारपाल के इस उत्तराधिकारी पुत्र ने आचार्य हेमचन्द्र के शिष्यों के साथ अत्यन्त निर्दयता का व्यवहार किया था। उसने आचार्य रामचन्द्र को, जो एक सौ से अधिक ग्रन्थों के प्रणेता थे, तप्त धातु पर बलपूर्वक बैठाकर मार डाला था। इस घटना की जैसे आखों देखी खबर इस संग्रह में सुरक्षित है और जिसकी पुष्टि अन्य समकालीन ग्रन्थों से भी होती है। इसी प्रकार यशस्वी मन्त्रियों वस्तुपाल-तेजपाल के धार्मिक कृत्यों का जैसा सजीव वर्णन इस संग्रह में है, वह ऐतिहासिकता के काफी निकट है। उनके द्वारा किए हुए कार्यों की पुष्टि अरिसिंह कृत 'सुकृतसंकीर्तन' से होती है। यहाँ यह कहना आवश्यक है कि अरिसिंह इन दोनों मन्त्रियों के समकालीन थे और उनके विवरण की सत्यता पर सन्देह नहीं किया जा सकता। प्रस्तुत संग्रह के विवरण को देखते हुए इसकी ऐतिहासिकता स्वयं सिद्ध हो जाती है। इसी प्रकार 'कुमारपालप्रबन्ध' में घटनाओं के
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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