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________________ संस्कृत छाया : भणति च वयस्ये! उत्कण्ठितया दृष्टा प्रभूतकालात् । अतिशोभनं हि जातं यत् असुरगृहमपि तवाप्यत्र ।। २३५।। गुजराती अनुवाद : अने बोलवा लागी के सखी घणा समयनी उत्कंठा पछी तने जोई। बहु सारं थयु के तारुं सासलं पण अहीं छे। हिन्दी अनुवाद : और कहने लगी कि सखी बहुत समय से तुम्हें देखने की इच्छा के बाद देखी। यह बहुत अच्छा है कि तुम्हारी ससुराल भी यहीं है। गाहा : जं तुमए दिठाए दिटुं मन्नामि पिइ-हरं सव्वं । इय भणिउं देवीए उचिय-पवित्ती कया तीए ।। २३६।। संस्कृत छाया : यत् त्वयि दृष्टायां दृष्टं मन्ये पितृगृहं सर्वम् ।। इति भणित्वा देव्योचित-प्रवृत्तिः कृता तस्याः ।। २३६।। गुजराती अनुवाद : तने जोईने मने माटुं पियर अहीं होय अम लागे छे, आम कहीने देवीस श्रीकान्ता माटे उचित व्यवस्था की। हिन्दी अनुवाद : तुम्हें देखकर मेरा भी पीहर यही हो ऐसा हमें लगता है। ऐसा कहकर देवी ने श्रीकान्ता के लिए उचित व्यवस्था की। गाहा : उवविठ्ठाओ दोनिवि कुसल-पवित्ती य साहिया सव्वा । खणमेगं संभासं काऊण भणइ सिरिकंता ।। २३७।। संस्कृत छाया : उपविष्टयोः द्वयोरपि कुशल-प्रवृत्ति कथिता सर्वाः । क्षणमेकं सम्मापं कृत्वा भणति मीकान्ता ।।२३७।।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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