SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाहा : धणदेवोवि हु अइगुरु- सोगो डहिऊण तस्स तं देहं । सव्वंपि समर - भूमिं जोयावह नियय- पुरिसेहिं ।। २२६ । । संस्कृत छाया : धनदेवोऽपि खल्वति गुरुशोको दग्ध्वा तस्य तं देहम् । सर्वमपि समरभूमिं दर्शयति निजकपुरुषैः ।। २२६ गुजराती अनुवाद : खूब दुःखी थयेलो धनदेव अना देहनो अग्नि संस्कार करीने आखी युद्धभूमि पोताना माणसो जोड़े जोई। हिन्दी अनुवाद : अत्यन्त दुःखी हुए धनदेव ने उनके (देवशर्मा) शरीर का अन्तिम संस्कार करने के बाद पूरी युद्ध भूमि को अपने आदमियों के साथ देखा । गाहा : न य कत्थइ उवलद्धं करंकमेत्तंपि पल्लि - नाहस्स । तत्तो चिंतइ एसो हा! धी! विहिणो विलसियस्स ।। २२७ ।। संस्कृत छाया : न च क्वचिदुपलब्धं करङ्कमात्रमपि पल्लिनाथस्य । ततश्चिन्तयत्येष हा! धिग् ! विधेर्विलसिस्य ।। २२७ ।। गुजराती अनुवाद : क्यांय पण पल्लीपतीना सुप्रतिष्ठनुं हाड़ पिंजर जोवा न मळ्यु अट्ले धनदेव चिंता करवा लाग्यो के धिक्कार छे आ विधिना विलासने । हिन्दी अनुवाद : पल्ली में कहीं भी सुप्रतिष्ठ का हाड़ पंजर देखने को नहीं मिला इसलिए धनदेव को चिन्ता होने लगी कि विधि की इस व्यवस्था पर धिक्कार है। गाहा : तारिस - गुण - जुत्तस्सवि सरल-सहावस्स सुप्पइट्ठस्स । निग्घिण - कणगवईए हा! हा! कह दारुणं विहियं ? ।। २२८ ।। संस्कृत छाया : तादृश- गुणयुक्तस्याऽपि सरलस्वभावस्य सुप्रतिष्ठस्य । निर्घृणकनकवत्या हा ! हा! कथं दारुणं विहितम् ।। २२८ । ।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy