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________________ गाहा : एत्यंतरम्मि केणवि पओययेणं समागओ तत्थ । घणदेवो अह पेच्छइ समाउलं परियणं सव्वं ।।१८२।। संस्कृत छाया : अत्रान्तरे केनापि प्रयोजनेन समागतस्तत्र । धनदेवोऽथ प्रेक्षते समाकुलं परिजनं सर्वम् ।।१८२।। गुजराती अनुवाद :___अटलीवाट मां कोई कारण थी धनदेव त्यां आव्यो अने अधा लोकोने आकूळ व्याकूळ जोया। हिन्दी अनुवाद : इतने में किसी कारण से धनदेव वहाँ आया और लोगों को आकुलव्याकुल देखा। गाहा : अह दर्ल्ड सिरिदत्तं पुच्छइ किं मित्त! आउला तुब्भे? । दीसह विहाण-मुहा, अह सिरिदत्तो इमं भणइ ।।१८३।। संस्कृत छाया : अथ दृष्ट्वा श्रीदत्तं पृच्छति किं मित्र! आकुला यूयम् । दश्यध्वं विद्राणमुखाः, अथ श्रीदत्त इदं भणति ।।१८३।। गुजराती अनुवाद : जोईने श्रीदत्त ने पूछयु के मित्र तमे आकूळ व्याकूळ (देखाओ) छो अने उदास छो. त्यारे श्रीदत्ते कह्यु के... हिन्दी अनुवाद : देखकर श्रीदत्त से पूछा कि मित्र तुम क्यों आकुल-व्याकुल और उदास हो तब श्रीदत्त ने कहा.... गाहा : सिरिकंता मह भगिणी कन्ना सप्पेण अज्ज दत्ति । न उ जीवावइ कोवि हु तेणम्हे आउला मित्त! ।।१८४।। अन्नं च। नेमित्तिएण पुव्वं आइटुं आसि सप्प-डसियं जो।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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