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________________ गुजराती अनुवाद : हवे धनदेव नी वात सांधणी ने सुप्रतिष्ठ बोल्यो हे धनदेव, तमारी वात बराबर छे पण साथे-साथे तमे आ दिव्य मणी स्वीकार्यो तो हुं मारी जातने कृतार्थ मानीश। तेथी तमे मारी शांतिमाटे पण आ मणिने ग्रहण कटो. हिन्दी अनुवाद : अब धनदेव की बात सुनकर सुप्रतिष्ठ ने कहा, हे धनदेव! तुम्हारी बात ठीक है किन्तु साथ-साथ यदि तुम यह मणि स्वीकार कर लो तो इसके लिए मैं अपनी जात को कृतार्थ मानूंगा। इसलिए तुम हमारी शान्ति के लिए यह मणि ग्रहण करो। गाहा : नाउं अइनिब्बंध गहिओ विणिएण सो मणी पवरो। अह भणइ सुप्पइट्ठो पुणरवि धणदेवमासज्ज ।।१४९।। संस्कृत छाया : ज्ञात्वाऽतिनिर्बन्धं गृहीतो विनीतेन स मणि-प्रवरः । अथ भणति सुप्रतिष्ठः पुनरपि धनदेवमासाच ।।१४९।। गुजराती अनुवाद : अत्यन्त आयह जाणीने हृदयपूर्वक धनदेवे मणीनो स्वीकार कर्यो त्यारे सुप्रतिष्ठे फटीथी कर्वा के... हिन्दी अनुवाद : सुप्रतिष्ठ का अत्यन्त आग्रह जानकर धनदेव ने वह मणि स्वीकार कर ली तब सुप्रतिष्ठ ने फिर कहा किगाहा : गंतूण कुसग्गपुरे नियत्तमाणेण निय-पुराभिमुहं । आगंतव्वं इहइं अम्हाण अणुग्गहट्ठाए ।।१५०।। संस्कृत छाया : गत्वा कुशाग्रपुरे निवर्तमानेन निजपुराभिमुखम् । आगन्तव्यमिहास्माकमनुग्रहार्थे ।।१५।।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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