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________________ गाहा : भणियं देवेण तओ हवइ हु देवाण दंसणममोहं । तो भणसु भद्द! किंचिंवि जेण तयं तुह पयच्छामि ।। १२७ ।। संस्कृत छाया : भणितं देवेन ततो भवति खलु देवानां दर्शनममोघम् । ततो भण भद्र! किञ्चिदपि येन तत्तुभ्यं प्रयच्छामि । । १२७ ।। गुजराती अनुवाद : त्यारे देवे कहयुं देवोनुं दर्शन निष्फळ नथी जतुं तेथी तुं कई पण मांग ते बधुं हुं तने आपु. हिन्दी अनुवाद : तब देव ने कहा देवों का दर्शन निष्फल नहीं जाता इसलिए तूं कुछ भी मांगो, वह सब मैं तुम्हें दूंगा। गाहा : तो भाइ चित्तवेगो जइ एवं देसु मज्झ तं किंचि । नहवाहण - खयरो जह न सक्कए मं पराभविडं । । १२८ ।। संस्कृत छाया : ततो भणति चित्रवेगो यद्येवं ददस्व मह्यं तत् किञ्चिद् । नभोवाहन - खचरो यथा न शक्यते मां पराभवितुम् ।। १२८ । गुजराती अनुवाद : त्यारे चित्रवेगे कह्युं तुं मने जे कईं पण आपे ते अवुं आप के नभोवाहन विद्याधर मने हरावी न शके । हिन्दी अनुवाद : तब चित्रवेग ने कहा कि आप मुझे जो भी दें मुझे इतना दीजिए कि नभोवाहन मुझे पराजित न कर सके । गाहा : भणियं देवेण तओ महिला सहियस्स पहरिओ जं सो । विज्जाहर-कय- मेरं विलंघिउं दप्प-वामूढो । । १२९ । ।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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