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________________ संस्कृत छाया : ईषद्धसित्वा ततो देवः कथयति भद्र! यद्येवम् । तदा पृष्ठतो निरुपय येन तां प्रेक्षसे दयिताम् ।।१०७।। गुजराती अनुवाद : थोडुक हसीने देवे कहयुं हे भद्र! आमज छे तो तुं वळीने पाछळं जोईश तो तने तारी प्रियतमा देखाशे। हिन्दी अनुवाद : तब देव ने थोड़ा हँसकर कहा हे भद्र! यदि ऐसा है तो अपने पीछे देखोगे तो तुम्हें तुम्हारी प्रियतमा दिखाई देगी। गाहा : एवं सुरेण भणिओ वलियग्गीवं निरूवई जाव । ताव य विहूसियंगी पेच्छइ निय-भारियं सहसा ।।१०८।। संस्कृत छाया : एवं सुरेण भणितो वलितग्रीवं निरूपयति यावत् । तावच्च विभूषिताङ्गी प्रेक्षते निजभायाँ सहसा ।।१०८।। गुजराती अनुवाद : आ प्रमाणे देवे कीधुं त्याटे पाछळ वळीने ज्यां जुवे छे त्यां स्कदम बनी ठनी ने पोतानी पत्नी ने जुवे छे। हिन्दी अनुवाद : इस प्रकार देव के कहने के बाद जहाँ मुड़ के वह देखता है, एकदम बनठन कर तैयार अपनी पत्नी को देखता है। गाहा : तं दह चित्तवेगो ससंकिओ निय-मणम्मि वज्जरइ । सुर-वर! साहसु सच्चं हासं मोत्तूण मह इण्हिं ।।१०९।। संस्कृत छाया : तां दृष्ट्वा चित्रवेगः सशङ्कितो निज-मनसि कथयति । सुरवर! कथय सत्यं हास्यं मुक्त्वा ममेदानीम् ।।१०९।।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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