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संवेग के मूल रहस्य की जैन दृष्टि : 37 जहाँ राग होता है, वहाँ द्वेष की नियमा अर्थात् अनिवार्यता रहती है। इन दोनों के कारण मन अत्यधिक विकारों को प्राप्त होता है। ?? यहाँ भी अन्य सारे संवेगों का मूल राग-द्वेषात्मक आत्म-परिणाम ही सिद्ध हो रहा है।
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बौद्ध धर्म में कर्म के दो प्रकार बताये गये हैं- चेतनापरक जो कि मानस कर्म है तथा चेतयित्वा कर्म अर्थात् कायिक और वाचिक कर्म । हमारे आचार, व्यवहार को मन, वचन, काय तीनों ही घटक प्रभावित करते हैं। उनमें चेतना का भी योग रहता है। संवेग में भी ज्ञान और अभिव्यक्ति दोनों मान्य रहे हैं। ज्ञान की दृष्टि से मानस कर्म तथा अभिव्यक्ति में वचन और काय कर्म का समावेश सहज हो जाता है। भगवद्गीता में भी चित्त से सारे कर्मों के होने की बात कही गई है - चेतसा सर्वकर्माणि ।
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उपर्युक्त चित्त या चेतना का तात्पर्य अविद्या और तृष्णा से मुक्त अवस्था से है, क्योंकि अविद्या और तृष्णा सारे कर्मों का प्रेरक बल है। तृष्णा को दुःख मूल कहा गया है अर्थात् संवेगों की जननी तृष्णा बनती है जो मोह और राग से उपजी एक लालसावृत्ति है। तृष्णा को आयुर्वेदोपनिषद् में सुख-दुख का कारणभूत माना गया है- तृष्णा च सुखदुःखानां कारणम् ।४ एक तृष्णा ही दीर्घ दुःख देने वाली तथा अन्तःकरण को अतिसंकट में योजित करती है । २५
काम-तत्त्व
काव्य और नाट्यशास्त्रों में काम तत्त्व को मूल संवेग के रूप में स्वीकार किया गया है । इस तत्त्व में भी मोह और राग का अस्तित्व तो रहता ही है, राग की एक अभिव्यक्ति कामस्वरूप भी होती है । भरतमुनि ने भावों को कामसंभव माना है । २६
व्यक्ति अपनी इच्छानुसार काम को मदनकाम के रूप में स्त्री की अभिलाषा आदि के द्वारा इस मनोवृत्ति को पूरा करता है। यह काम संवेग बहुत बड़ा संवेग है। इसके अपने अनन्तरूप हैं। फ्रायड ने भी लिबिडो की मनोवृत्ति को मूल माना है तथा इसे अन्य प्रवृत्तियों का प्रेरक बल स्वीकार किया है। काम के परिवेशानुसार प्रशस्त और अप्रशस्त अनेक रूप होते रहते हैं। काम का दूसरा बड़ा प्रकार इच्छा काम कहलाता है। भगवान महावीर ने इच्छा को आकाश के समान अनन्त बताया है। इच्छा के अनुरूप संवेगों की अभिव्यक्ति हमारे प्रत्यक्ष अनुभव में आती है।
काम से काम कभी शान्त नहीं होता है, जैसे ईंधन से अग्नि कभी शान्त नहीं होती है अपितु वृद्धिगत होती है, वैसे ही काम भोग से काम पुष्ट होता है, काम शृंखला बढ़ती जाती है। काम का वेग बहुत तीव्र होता है । उसका सहज शमन कठिन है इसके लिए भगवान ने आहार - संयम, इन्द्रिय- संयम, मनोसंयम, वाणी- संयम आदि पर