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________________ पवित्र परम्परा संथाराः एक संक्षिप्त चर्चा : 23 क्या श्रीमती गांधी सहित समस्त राष्ट्र नेता इतने जड़ - मूढ़ थे कि उन्होंने विनोबा भावे पर आत्महत्या का आरोप नहीं लगाया, उन्हें जबरदस्ती ग्लूकोज नहीं दिया और न उन पर आत्महत्या के प्रयास का मुकदमा चलाया। यह तो सूरज की तरह साफ है कि संथारा करने वाले हमारे लिए प्रणम्य और अनुगम्य ही होते हैं, न कि उपहास या दया के पात्र। हमें सोचना चाहिये कि ऊपर से समान दिखने वाली दो क्रियाएँ यथार्थ में सर्वदा भिन्न भी हो सकती हैं। देश की सुरक्षा के लिए सैकड़ों हजारों युवकों ने अपना बलिदान कर दिया, क्या उनके बलिदान को आत्महत्या की निम्न कोटि में रखा जाएगा? कितने ही वैज्ञानिकों ने नई खोजों के लिए, मानवता के भले के लिए जीवनान्तक प्रयोग किए हैं, क्या उनकी इस कुर्बानी को आत्महत्या जैसा छिछला और निन्दनीय नाम दिया जा सकता है? नहीं बिल्कुल नहीं। भारत-पाकिस्तान प्रथम युद्ध में जब पाकिस्तानी पैटन टैंकों को भारतीय जवान ध्वस्त करने में असमर्थ हो रहे थे तब कुछ बलिदानी किस्म के सैनिकों ने अपने शरीर पर बम बांधकर उनके टैकों में घुस कर उन्हें नष्ट किया था। उन महान् वीरों के आत्म बलिदान से समूचा भारतवर्ष गौरवान्वित हो उठा था। उस समय किसी सिरफिरे ने यह मामला उठाने का दुस्साहस नहीं किया कि उन सैनिकों ने आत्महत्या की है। इतने दकियानूसी विचारधारा के लोग तब इस देश में नहीं थे। उनकी वीरता के लिये उन जांबाज बहादुर सैनिकों को वीरचक्र, महावीरचक्र, परमवीरचक्रों से नवाज़ा गया था । देशरक्षा के लिए किया गया आत्म-बलिदान जिस प्रकार पुरस्कृत किया जाता है, उसी प्रकार आध्यात्मिक उच्चता की प्राप्ति के लिए ग्रहण किया संथारा भी संस्तुत किया जाता है। संथारे में तो किसी के वध का प्रयास या चिन्तन भी नहीं होता । सती प्रथा एवं संथाराः एक पूरब एक पश्चिम मुगलकाल में राजस्थान में रानी पद्मिनी आदि हजारों नारियों ने अपने शील की रक्षा के लिए आत्म बलिदानी जौहर खेले थे। जिन्हें आज भी महिमामंडित किया जाता है। जैन धर्म में इस प्रथा को अपनाया तो नहीं गया, क्योंकि जौहर में अग्नि में अपने को भस्म किया जाता है और संथारे में अग्नि आदि का प्रयोग वर्जित है, पर आपात्कालीन उपाय के रूप में इसका सर्वथा खण्डन भी नहीं किया गया। जैन धर्म भारत में प्राचीन काल में होने वाली सती प्रथा के विरुद्ध रहा है क्योंकि सती प्रथा ढलती उम्र में मरण की सन्निकटता की हालत में मृत्यु का आलिंगन न होकर, पति वियोगजन्य शोक से प्रभावित होकर उठाया हुआ मोह विह्वल आचरण है। अगले जन्म में पति- मिलन की एक सांसारिक कामना भी इसके भीतर छिपी हुई रहती है। इसके अतिरिक्त सती होने के लिए परिवार और समाज का दबाव भी होता है। जबकि,
SR No.525093
Book TitleSramana 2015 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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