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________________ 16 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 3, जुलाई-सितम्बर, 2015 का आखिरी वक्त आ जाए और हम बेभान हालत में पड़े रह जाएं और उस क्षण का आनन्द भी न ले सकें। हर धार्मिक व्यक्ति की दिली तमन्ना होती है कि जब मैं अपनी आखिरी सांस ले रहा होऊं तब प्रभु के चरणों में ध्यान बना रहे। जैन धर्म में उस समय के लिए एक पूरी वैज्ञानिक आध्यात्मिक व्यवस्था प्रदान की गयी है। जीवन का अधिकांश भाग संयम पूर्वक व्यतीत हो जाने के बाद साधक एक निर्णय लेता है कि मुझे इस शरीर से कुछ-कुछ मोह घंटाना चाहिए और तब वह १२ वर्ष की संलेखना प्रारम्भ कर देता है। उत्तराध्ययन सूत्र के ३६ वें अध्ययन की २५१ से २५५वीं गाथा तक इस प्रक्रिया को स्पष्ट किया गया है बारसेव उ वासाइं संलेहुक्कोसिया भवे । संवच्छरमज्झमिया, छम्मासा य जहन्निया ।। अर्थात् सबसे बड़ी संलेखना १२ वर्ष की, मध्यम संलेखना एक वर्ष की तथा सबसे छोटी संलेखना ६ महीने की होती है । १२ वर्ष की संलेखना में भी एकदम आहार का त्याग नहीं किया जाता, केवल शरीर की जरूरतें घटाई जाती हैं जैसे कि पहले चार साल तक दूध, दही, घी आदि गरिष्ठ या दुष्पाच्य विग्गइयों (विकृतियों) का सेवन नहीं किया जाता। अगले चार वर्ष तक व्रत, बेले, तेले आदि की विविध तपस्या की जाती है। फिर दो वर्ष तक एक-एक दिन के अन्तराल से आयम्बिल (रुक्षाहार) किया जाता है, फिर ११ वें वर्ष के प्रथम ६ महीने तक कोई भी विशेष तप (तेला, चोला आदि) करने पर पूर्ण निषेध है। अगले ६ महीने उत्कट या कठोर तप का विधान है। फिर अंतिम वर्ष में निरन्तर क्रमबद्ध आयम्बिल तप करने का प्रावधान है और जब यह प्रतीत होने लगे कि शरीर बिल्कुल अंतिम छोर से गुजरने जा रहा है, तब १५ दिन या एक महीने के लिए पूर्णतः आहार का त्याग कर दे। यदि १२वें वर्ष के मध्य में भी यह एहसास हो जाए कि मृत्यु निकट है तो पूर्ण आहार त्याग किया जा सकता है। क्या संथारे की इतनी विस्तृत भूमिका के बाद भी कोई संदेह शेष रह जाता है कि जैन धर्म में आत्महत्या को क्यों निंदनीय तथा संथारे को क्यों अति वंदनीय माना गया है ? १२ वर्षीय, एक वर्षीय या षाण्मासिक संथारे के अलावा भी तत्कालीन संथारे के लिए जैन शास्त्रों में अनुमति दी गई है उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निष्प्रतीकारे। धर्माय तनुविमोचनमाहुः सल्लेखनामार्याः । । ' ५
SR No.525093
Book TitleSramana 2015 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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