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________________ स्यावादकल्पलता में शब्द की द्रव्यत्व सिद्धि : 13 शब्दायमान ब्रह्माण्ड के सभी सूक्ष्म और स्थूल हम सभी को स्पर्श गुण द्वारा प्रभावित करते ही हैं। मुख से निकला प्रत्येक शब्द हमारे शरीर को चलायमान कर देता है। फलतः हमारी सूक्ष्म नाड़ियाँ झंकृत हो उठती हैं। शब्द की स्पर्शता के सम्बन्ध में मैंने भी कुछ अनुभव किया है, जिससे शब्द का स्पर्श गुण सिद्ध होता है। वे कुछ अनुभव इस प्रकार है१. यदि शब्द में स्पर्श गुण न हो तो पेड़-पौधों को संगीत सुनाए जाने पर उनके विकास में अनुकूल प्रभाव नहीं हो। किन्तु प्रयोगों के आधार पर यह देखा गया है कि श्रोत्रेन्द्रिय से रहित पेड़-पौधों पर संगीत का अनुकूल प्रभाव होता है। २. यदि शब्द में स्पर्श गुण नहीं हो तो ध्वनि कर्कश या मृदु प्रतीत नहीं हो। शब्द द्रव्य है तथा उसमें कर्कश, मृदु आदि स्पर्श-गुण रहते हैं। ३. मन्दिरों और घरों में अशुभ पुगलों के निवारणार्थ लोग मंत्रों, भजनों का सतत प्रयोग करते हैं। इसमें भी शब्द का स्पर्श गुण सिद्ध होता है। 8. Masaru Emoto was a Japanese author whose early work explored his theory that "Water could react to positive thoughts and words, and that polluted water could be made pure through prayer and positive visualization."८. मसेरू लेखक ने अपनी पुस्तक 'Hidden massage in water' में पानी के प्रयोग के बारे में लिखा है। इस प्रयोग में उन्होंने दो गिलासों को पानी से भरा। तत्पश्चात् एक गिलास को सामने रखकर अभद्र शब्दों का प्रयोग किया और उसे फ्रिज में जमने के लिए रख दिया। इस तरह दूसरी गिलास के सम्मुख प्रशंसा भरे शब्दों का प्रयोग किया और उसे भी फ्रिज में रख दिया। दूसरे दिन जब दोनों गिलास को देखा तो पाया कि अभद्र शब्दों वाले गिलास में बर्फ की आकृति बदसूरत है और प्रशंसात्मक शब्दों वाली गिलास में बर्फ की बहुत ही सुन्दर आकृतियाँ बनी हैं। यह प्रयोग लेखक ने अनेक बार किया तथा प्रत्येक बार परिणाम एक जैसा ही रहा। अत: इस प्रयोग से जलीय जीवन की सिद्धि के साथ श्रोत्रेन्द्रिय रहित जल पर शब्दों की स्पर्शता सिद्ध होती है। इस पुस्तक में लेखक कहता है कि गन्दे पानी को प्रार्थना और सकारात्मक दृष्टिकोण से शुद्ध किया जा सकता है। यह जल शुद्धिकरण का अहिंसात्मक उपाय है। नैयायिक शब्द की स्पर्शता पर एक शंका करते हुए कहते हैं कि स्पर्शवान शब्द द्रव्य जब कर्णछिद्र में प्रवेश करता है तब श्रोत्रद्वार पर लगे कसितूल को वायु प्रवेश की
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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