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________________ 12 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 2, अप्रैल-जून, 2015 नैयायिकों द्वारा शब्द को निष्क्रिय (क्रियारहित) मानने पर श्रोत्र द्वारा स्व से असम्बद्ध का ग्रहण होगा जिससे उसमें अप्राप्यकारित्व की आपत्ति होने लगेगी और यदि शब्द के साथ श्रोत्र के सम्बन्ध की कल्पना करें तो दो प्रकार की स्थितियाँ बनती हैं, यथा१. प्रथम यह कि श्रोत्र शब्द के जन्म स्थान में पहुँचकर शब्द के साथ सम्बन्ध स्थापित करे। २. द्वितीय यह कि शब्द स्वयं श्रोत्र स्थान में जाकर उससे सम्बन्ध स्थापित करे। दोनों ही पक्ष समीचीन नहीं हैं, क्योंकि प्रथम पक्ष में श्रोत्र आकाश स्वरूप होने से निष्क्रिय (क्रियारहित) है और द्वितीय पक्ष में शब्द की सक्रियता (क्रियायुक्तता) स्वयमेव स्वीकृत हो जाती है। अतः शब्द द्रव्य है, यह सिद्ध होता है। यहाँ पर यह कहना उपयुक्त होगा कि शब्द ध्वनि प्राय: चेतन और अचेतन दोनों को असाधारण रूप से प्रभावित करती है। स्थूल व श्रव्य ध्वनियों का प्रभाव तो दृष्टिगोचर होता है, पर अश्रव्य और सामान्य ध्वनि तरंगें भी कोई कम प्रभावित नहीं करती है। इसीलिए आज डाक्टर इन्फ्रासोनिक और अल्ट्रासोनिक ध्वनि-प्रवाह से रोगों का निदान करते हैं। इन्फ्रासोनिक शब्दों को एक शक्ति के रूप में प्रयुक्त करके रक्त संचार की गति को तेज किया जाता है, सड़े-गले ऊतकों को काटकर बाहर निकालने में, कीड़ों को मारने आदि में सहायता ली जाती है, लकड़ी तथा धातुओं की मजबूती परखी जाती है। इस तरह जब एक्स-रे द्वारा खीचें गए फोटोग्राफ अस्पष्ट आने लगे तब अल्ट्रासाउण्ड शब्द सामर्थ्य ने इस कार्य को सरल बना दिया। अति सूक्ष्म कम्पनों को जब विद्युत आवेश प्रदान किया जाता है तो भेदन क्षमता इतनी बढ़ जाती है कि वह सघन से सघन वस्तु के परमाणुओं का भेदन करके उसकी आन्तरिक रचना का स्पष्ट फोटोग्राफ प्रस्तुत कर देता है। अल्ट्रासाउण्ड के द्वारा चिकित्साशास्त्री नित नवीन सफलताएँ अर्जित कर रहे हैं। चिकित्सा जगत् में शब्द के सूक्ष्मतम प्रयोगों की उपलब्धियाँ शब्द के द्रव्यत्व को सिद्ध करती हैं। अत: महावीर द्वारा उद्घाटित शब्द द्रव्यता प्रामाणिक है। ३. तीसरी आपत्ति के सम्बन्ध में टीकाकार स्पर्श, वेग, अल्पत्व-महत्त्व, संयोग, संख्या आदि गुणों के आधार पर शब्द की द्रव्यता सिद्ध करते हैं। यथाक. स्पर्श गुण द्वारा शब्द की द्रव्यत्व सिद्धि : शब्द में स्पर्श की सत्ता सिद्ध है, क्योंकि कांसे के बर्तन आदि के ध्वनि से सम्बन्ध होने पर कर्णशष्कुली में अभिघात होता है। चूंकि अंभिघात स्पर्श एवं वेग सापेक्ष क्रिया से उत्पन्न होता है, अतः शब्द में स्पर्श गुण सिद्ध है।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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