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________________ स्याद्वादकल्पलता में शब्द की द्रव्यत्व सिद्धि : 11 वर्णो न नित्य इति तावदवादि युक्तं, द्रव्यत्वमस्य पुनरर्थवशाद् यदुक्तम्। व्योमैकवर्तिनि गुणे न विराजते तद्, गुञ्जव राजवनितामणिहारमध्ये।।। अर्थात् वर्ण (शब्द) नित्य नहीं है, यह युक्तिसंगत है, पर वर्ण का द्रव्य स्वरूप असंगत है। जैसे राजरानी के मणिमयहार के बीच गुञ्जा का ग्रंथन शोभा प्राप्त नहीं करता है वैसे ही एक मात्र आकाश के गुण को द्रव्य मध्य गिन लेना अशोभनकारी है। अत: नैयायिक शब्द के अद्रव्यत्व पक्ष में निम्न कथन करते हैं१. उदयनाचार्य कहते हैं- 'शब्दो गुणः, बहिरिन्द्रिय व्यवस्थापकत्वात्, रूपादिवत्। बहिरिन्द्रिय की व्यवस्था करने वाला गुण होता है। जैसे रूप का ग्रहण जिस इन्द्रिय से होता है वह चक्षु है, रस का ग्रहण जिससे होता है, वह रसना है। इसी तरह शब्द का ग्रहण जिससे हो वह श्रोत्र इन्द्रिय है। रूप, रसादि गुणों के समान ही शब्द भी श्रोत्र इन्दिय का व्यवस्थापक होने से गुण है, द्रव्य नहीं। २. नैयायिक दूसरा तर्क देते हैं कि यदि शब्द द्रव्य हो तो श्रोत्र से उसका ग्रहण नहीं होगा, क्योंकि श्रोत्र द्रव्य का ग्राहक नहीं है। ३. नैयायिकों का तीसरा तर्क है कि शब्द एक मात्र द्रव्य आकाश में आश्रित है और जो द्रव्य में आश्रित होता है, वह द्रव्य नहीं हो सकता है। उत्तर पक्ष : उपाध्याय यशोविजय कृत तार्किक खण्डन नैयायिकों की शब्द के सम्बन्ध में की गई उक्त स्थापना का निरसन टीकाकार निम्न प्रकार से करते हैं१. बहिरिन्द्रिय का व्यवस्थापक होने से जो शब्द को गुण कहा गया है, वह असंगत है, क्योंकि रूपादि की द्रव्य से रहित स्वतंत्र सत्ता असिद्ध है। अतः नैयायिकों का दृष्टान्त असिद्ध है। दूसरी बात यह है कि शब्द का ग्रहण चक्षु आदि अन्य इन्द्रियों से नहीं होता, उसका भिन्न इन्द्रिय श्रोत्र से ग्रहण होने के कारण शब्द को गुण मानने में गौरव होता है, जो एक दोष है। इससे न्याय-वैशेषिकों की यह मान्यता कि श्रोत्रेन्द्रिय द्रव्य का अग्राहक होता है, खण्डित हो जाती है। २. दूसरे तर्क के निरसन में टीकाकार कहते हैं कि शब्द के द्रव्यत्व का अनुमान शब्द के अद्रव्यत्व अनुमान से बलवान है। 'शब्दो द्रव्यम्, क्रियावत्त्वात् शरवत्'' इस अनुमान द्वारा शब्द का द्रव्यत्व सिद्ध है, क्योंकि जो क्रियावान् होता है वह द्रव्य होता है।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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