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14 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 2, अप्रैल-जून, 2015 तरह धक्का लगना चाहिए। टीकाकार उत्तर देते हैं कि स्पर्शवान् द्रव्य से धक्का लगे, ऐसा कोई नियम नहीं है, क्योंकि जैसे धूम स्पर्श से चक्षु में पीड़ा होती है पर नेत्र के बाल न तो हिलते हैं और न ही उन्हें कोई धक्का लगता है। उसी तरह शब्द स्पर्श से श्रोत्रस्थ कर्पासतूल को धक्के से बाधित होना आवश्यक नहीं है। टीकाकार यशोविजय यहाँ स्वयं शंका उठाकर कहते हैं कि यदि कोई यह कहे कि शब्द की सहचारी वायु से कर्ण का अभिघात होता है, अत: शब्द में स्पर्श गण की सिद्धि नहीं होती है। इस शंका के समाधान में वे कहते हैं कि यह अभिघात-विशेष शब्द की तीव्रता का अनुविधायी है, वायु का नहीं। कर्णरूप अवयव का अभिघात शब्द जन्य होने से शब्द स्पर्शवान् है, सिद्ध होता है। २. वेग-संस्कार गुण से शब्द की द्रव्यत्व सिद्धि : न्याय-वैशेषिकों के अनुसार वेग नामक संस्कार गुण जिसमें रहता है वह द्रव्य होता है। उनकी इस मान्यता के आधार पर उपाध्याय यशोविजय ने शब्द में द्रव्यत्त्व की सिद्धि की है। वे कहते हैं कि धूम और प्रभा की तरह शब्द का स्पर्श अनुद्भुत होता है। शब्द में अनुद्भुत स्पर्श मानने पर भी कर्ण का अभिघात होता है, क्योंकि अभिघात वेगवान निबिडावयव द्रव्य की क्रिया से होता है, उसमें स्पर्श की अपेक्षा नहीं है। जैसे पिशाच के पादप्रहार में वेगवान निबिडावयव होने से अभिघात होता है, ठीक वैसे ही शब्द में वेगात्मक गुण से अभिघात होता है। अत: वेगात्मक गुण से भी शब्द की गुणाश्रयता निर्बाध सिद्ध है। ३. अल्पतादि परिमाण गुण के अनुभव से शब्द की द्रव्यत्व सिद्धि : अमुक शब्द छोटा है और अमुक शब्द बड़ा है, इस प्रकार सर्वजन सिद्ध अनुभव से शब्द में अल्पत्व-महत्त्व सिद्ध है। पर यदि कोई यह कहे कि जो परिमाणवान होता है, उसकी इयत्ता का अवधारण होता है और शब्द में इयत्ता का अवधारण नहीं होता है तो टीकाकार कहते हैं कि जैसे वायु में इयत्ता का अवधारण न होने पर भी उसमें अल्पत्व-महत्त्व आदि परिमाण सर्वमान्य हैं, उसी प्रकार शब्द में भी अल्पत्वादि गुण सिद्ध है।२१ आज विज्ञान ने वायु और शब्द के परिमाण अवधारण को शक्य बना दिया है। शब्द में होने वाली अल्पत्व-महत्त्व की प्रतीति शब्द की तीव्रता-मन्दता द्वारा नहीं होती है, अपितु शब्द में होने वाली क्रिया की मन्दतादि से प्रतीत होती है।१२ जैसे'शब्द: मन्दमायाति - शब्द मन्दता से आ रहा है' इस प्रतीति से शब्द अल्प है एवं 'शब्दः तीव्रमायाति - शब्द तीव्रता से आ रहा है। इस प्रतीति से शब्द महान् है, इसकी